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महती जातिसेवा तृतीय भाग [७५५ पर सबने परम प्रकाश रहित जड़पिंजरको ही पाया । वह आत्मा जो इस पर्याय में सेठ माणिकचन्द कहलाता था नहीं रहा । आपकी शुभ भावना इंग्लैंड में एक जैन बोर्डिग स्थापित करनेकी थी। जिसके लिये आपने मरणके दिनको भी बोर्डिंगमें देखते हुए मि. उदाणी एम. ए. से कहा था । यह आपकी भावना पूर्ण नहीं हो सकी।
सेठनीको धार्मिक कार्यों का कितना बड़ा ध्यान था इस सम्बन्धमें आपके लिखे सन् १९-१२-१३के पत्रकी नकल यहां प्रकट की जाती है जो उन्होंने सेठ रोडमल मेघराजजी सुसारीको भेजा था ।
पत्र नकल सेठ रोडमल मेघराजजी। श्रीमान् सेठ रोडमलजी मेघराजजी सुमारी। मान्यवर महाशय,
धर्म स्नेहपूर्वक जुहारु । अपरंच आपका पत्र नं० ११४ ता० १४-१२-१३ ई० का मिला । बांच कर हर्ष हुआ कि आप लोगोंने समाजकी उन्नतिका भार अपने ऊपर लिया है। सिर्फ अफसोस इतना ही है कि उस उन्नतिके भारमें मैं आप लोगोंका सहायक नहीं हो सकूँगा । तथापि आशा है कि जब आप सरीखे महानुभाव, उत्साही, उद्यमी, धनाढ्य, समाजसेवाके लिये तन, मन, धनसे कटिबद्ध हो गये हैं, अवश्य ही समाज अपनी उन्नति कर लेगी इसमें शक नहीं। यह भी आशा है कि आप मुझे इसके लिये क्षमा करेंगे।
बावनगजाजीकी मूर्तिका जीर्णोद्धार, तीर्थक्षेत्र बड़वानीजीका सुप्रबन्ध तथा बोर्डिंग हाउसका स्थापन ये तीनों ही कार्य अत्यन्त आवश्यक हैं। मेरी श्रीजीसे यही प्रार्थना है इनके सम्पादनमें आप
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