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महती जातिसेवा तृतीय भाग । [७५१ १८ मई १९१४ को स्वर्गधाम पधारे । आप महासभाके आजन्म रक्षक रहे थे । इस ग्वबरसे सेठनीका चित्त और भी उदास हो गया। सेठ माणिकचन्दनीके चित्तमें जो बात बहुत कालसे जमी
थी कि दिगम्बर जैनियोंकी संख्या दिगम्बर जैन डायरेक्ट- व अवस्थाकी दिखलानेवाली कोई पुस्तक रीका छपकर तैयार तैयार हो वह कामना इस सन् १९१४ में होना व १५०००) पूर्ण हो गई । बाबू सूरजभानजीने इस विषयमें का व्यय कार्य प्रारम्भ नहीं किया। तब इसको स्वयं
सेठजीने बम्बई में अपने ही भानजेके भानजे सेठ ठाकुरदास भगवानदास जौहरीके अधीन किया। ठाकुरदासने ता. १५ नवम्बर १९०७से इसका कार्य उत्साह पूर्वक करना प्रारंभ किया और ७ वर्षोंके लगाकर परिश्रमसे अब इसकी १ बड़ी पुस्तकको जिसमें १४२३ सफे हैं छपाकर प्रसिद्ध कर दिया निसका मूल्य ८) रक्खा इस । कार्यमें दौरा करनेवाले डिरेक्टरोंने फार्म भरवाए जिनके छांटनेका काम हीराबाग धर्मशालाके सुपरिन्टेन्ट माणिकचन्द रावजी और भालचन्द्र महादेव द्वारा तथा क्लार्क कुन्दनलाल और गुलाबचन्द लुहाड्या द्वारा हुआ।मुख्य डाइरेक्टरोंने इस तरह प्रांतवार संस्था ली:--
मध्यप्रदेश राजपूताना और मालवा--फतहपुर जिला दमोह निवासी खूबचंद जैन ।
संयुक्तप्रांत बंगाल और पंजाब, जुगमन्धरदास जैन बाराबंकी बम्बई हाता और मैसूर प्रांत बारसीवाले तात्या नेमिनाथ पांगल व अन्य दो कर्मचारी।
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