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________________ ७५० ] अध्याय बारहवां । १००) शास्त्रदानके लिये श्रावकवनिता बोधनीका गुजराती भाषांतर “ दिगम्बरजैन” के ग्राहकोंको देनेके लिये २०१) पावागढ़ तीर्थमें । १००) गरीबोंको औषधिदान । १४७) परचूरन भंडार, मंदिर व तीर्थ । ५०) जैन धर्मकी पुस्तकें मंदिरमें रखनेको । ५०) ऋषभ ब्रह्मचर्याश्रम हस्तिनापुर । ५०) श्राविकाश्रम बम्बई, कपड़ा और भोजनके लिये । २५) सोजित्रा जैन पाठशाला । २५) करमसद ,, ,, १५) जयपुर शिक्षा प्रचारक समिति । १५) बनारस स्याद्वाद महाविद्यालय । १५) फुलकोर कन्याशाला, सूरत । १५) जैन सिद्धान्त पाठशाला, मोरेना । १५) अहमदावाद दि० जैन बोर्डिंग । १५) रतलाम दि० जैन बोर्डिङ्ग। १५) वनिताविश्राम, सूरत । श्रीमती मगनबाईजीको इस वियोगसे महान् कष्ट हुआ। सेठ माणिकचंदजीको रूपाबाई ऐसी धर्मात्मा सेठजीको शोक। भावजके वियोगसे भी शोक हुआ था । इतनेमें आपने मालूम किया कि महासभा महामंत्री जैनजातिभूषण मुंशी चम्पतरायजी वैशाख सुदी १३ ता. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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