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अध्याय नवां । इस सभाके स्थापित होनेका पक्का विचार तो कार्तिक सुदी
१४ सं० १९५६ को बम्बईकी सभामें बम्बई प्रान्तिक हो चुका था पर प्रान्तके सभासदोंको. नियमासभाका कार्यारंभ। वलीके अनुसार एकत्र करनेमें करीव १
वर्षके बीता । मिती आश्विन सुदी २ सं. १९५७ को इसका एक परोक्ष अधिवेशन होकर २१ सभासदोंकी सम्मतिसे ( प्रस्ताव स्वीकृत हुए
प्रबन्धकारिणी सभा २८ सभासदोंकी नियत हुई उनमें से मुख्य सभासद व कार्यकर्ता यह हुए---
सभापति-सेठ माणिकचंद पानाचंदनी । उपसभापति राजा दीनदयालजी । महामंत्री व 'जैनमित्र के सम्पादक-पंडित
गोपालदासनी बरैया। कोषाध्यक्ष-सेठ गुरुमुखराय सुखानंद ।
त्री विद्याविभाग-अण्णाप्पा फड्याप्पा चौगुले बी. ए.। मंत्री उपदेशक विभाग-सेट नाथारंगजी । मंत्री तीर्थक्षेत्र-सेठ चुन्नीलाल झवरचंद जौहरी। पुस्तकाध्यक्ष-पंडित धन्नालालनी ।
शोलापुर, वेलगांव, आमोद, सोजित्रा, आदिके सेठ हीराचंद, कुंवरप्पा भरमाप्पा हंगले, हरजीवन रायचंद, शाह सावलदास प्रभुदास आदि सभासद हुए। मगसर सुदी १५ सं. १९५७को बम्बई सभाने अपने उपदेशक भंडार, अनाथालय, जैनमित्र, व शिखरजी
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