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________________ समाजकी सच्ची सेवा । [ ३३५ सम्बंधी काम प्रान्तिक सभाके ज़िम्मे कर दिये और यह अपना काम ज़ोर शोर से चलाने लगी । दानार्थ प्रेरणा | जैसे सेठ माणिकचंदजी स्वयं दान करते थे वैसे दूसरोंको भी प्रेरित करते थे । वम्बई के सेठ माणि सेठ माणिकचंदजीकी कचंद लाभचंद चौकसीकी विधवा पत्नी नवलाई गु. भादो वदी ११ सं. १९५६ को गुजर गई । इसको धर्म व विद्याकी रुचि थी। सेठ माणिकचंदजी इसको धर्मार्थ खर्च करनेकी सदा प्रेरणा क रते रहते थे । मरणके पहले इसने १२०४२) का दान करके यह वसीयतनामा किया कि— ५००१) रु. के व्याजसे बम्बई में एक जैन पाठशाला अपने पति के नामसे चले | ३०६५) शुभ खाते में दृष्टियोंकी इच्छानुसार । ३०२) मेंसे १००) चांदीकी प्रतिमा बम्बई मंदिर में, २५० ) सोनेका छत्र सूरतके जुने मंदिर में, ११) फलटन के आदिनाथ मंदिर में छत्र व उपकरण, २०१) कर्मदहन, जिन गुणसंपत्ति, सोलह कारण व दशलक्षणीके उद्यापनमें । ३१५) शिखरजी, गजपंथा, चंपापुर, तारंगा, गिरनार, मांगीतुंगी, पावापुर, कुंथलगिरि, पालीताणा, केशरिया, दहीगांव, सूरत के विद्यानंद स्वामी इन १२ स्थानों में २५) पचीस २ रुपये व १५) बम्बई के तेरापंथी मंदिर में चांदी का छन । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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