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अध्याय छठा ।
विलायत, चीन, व भारत तीनोंके व्यापार में तीनों भाइयोंने बहुत सचाई से वर्तन करके अच्छा धन पैदा किया। इधर जब लक्ष्मीकी कृपा थी तब उधर और चिंता न हो ऐसा नहीं था । सेठ
सेठ हीराचंदको लक वेका रोग |
हीराचंदको संवत १९३५ में लकवाकी बीमारी हो गई जिससे वे बड़ी कठिनता से मंदिर तक जाते थे, शेष घर में ही पड़े रहते थे । अपने पिताको कष्टावस्थामें देखकर कृत उपकारको न भूलनेवाले कृतज्ञ सेठोंका दिल बहुत दुःख पाता था पर प्रत्येक जीव भिन्नर हैं, हरएकका कर्म्म हरएकके साथ है, कोई महान हितु भी अपने मित्रके सुख तथा दुःखको बटा नहीं सक्ता, erreat अपने बांधे कर्मका फल आप ही भोगना पड़ता है ।
इस समय इनके घर में एक बालक और रहता था जिसका नाल चुन्नीलाल था, यह सेठ हीराचंदजीकी चुन्नीलाल झवेरचं दूसरी कन्या मंच्छाबाईका पुत्र था जिसकी दका सम्बन्ध | लग्न सेठजीने गंगेश्वर गोत्रधारी सुरतके शाह
झवेरचंद ब्रीजलाल के साथ की थी और जिसका जन्म संवत् १९२४ चैत्र सुदी ११ को सुरतमें हुआ था । यह बालक तीक्ष्णबुद्धि था । पिताकी स्थिति बहुत साधारण थी, यह किराने की दलाली करते थे । इसके पिताने इसे गुजराती पांचमी पुस्तकतक पढ़ाकर १० वर्षकी ही उमरमें इसके मामा सेठ माणिकचंद पानाचंदके पास बम्बई भेजा दिया कि यह चतुर होकर धनपात्र हो जावे । यह बालक सेठके घर में बड़े प्रेमसे रक्खा गया ।
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