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________________ सन्तति लाभ । [१८१ एक वर्ष भी बम्बई आए नहीं हुआ था कि इसके पिताने सुरत बुलाकर इसका विवाह ११ वर्षकी उमरमें ही कर दिया। बम्बईके सेठोंने बहुत रोका पर उसने ध्यान नहीं दिया । इस कन्याकी उम्र ११ की थी और नाम जड़ावबाई था। विवाह होनेपर फिर चुन्नीलालको बम्बईमें भेज दिया। यह सेठोंके साथ रहकर दुकान व घरके काममें पड़ गया और अधिक पढ़ने लिखने पर कुछ भी मन न लगाया, और कुछ काल पीछे मोती पोरनेका काम सीखने लगा। इतने ही में सेठ माणिकचंदकी पत्नी चतुरमतीको द्वितीय गर्भ रहा । इस समय सेठ माणिकचंदको यह द्वितीय पुत्री मगनम- अभिलाषा हुई कि पुत्रका दर्शन हो तो तीका जन्म। अच्छा है । यह वात गृहस्थियोंमें प्रायः स्वाभाविक ही है कि वे पुत्रीकी अपेक्षा पुत्रके अस्तित्वको उत्तम मानते हैं। चतुरमतीको इस गर्भके रहते हुए अपने पतिसे अधिक प्रेम उत्पन्न होता था, यद्यपि प्रेमभाव पहले भी था, पर इस गर्मके कारणसे एक बहुत ही गाढ़ प्रीतिभाव पतिकी ओर झलक उठा था जिससे चतुरबाई सेठ माणिकचंदकी खूब ही सेवा करने लग गई थी, बारबार इनको देखकर प्रसन्न हुआ करती थी। चतुरबाईको धर्मके सम्बन्धमें जैसे रूपाबाईको खबर थी व रुचि थी ऐसी खबर व रुचि नहीं थी, साधारण रीतिसे दर्शन व जपकरना जानती थी, पर जबसे इसके यह गर्भ रहा यह चतुरमती धार्मिक कार्योंमें खूब मन लगाने लगी। मंदिरजीमें Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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