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________________ २२ ] अध्याय दूसरा । पत्रोंके द्वारा अंग्रेजोंने बादशाहसे व्यापारकी आज्ञा मांगी थी व अपनी रक्षा चाही थी । पर ४ वर्ष तक उद्योग करना पड़ा तब कप्तान बेस्टेने ता० ११ जनवरी १६१२ को बादशाहसे यह सनद लिखवा ली कि अंग्रेज लोग व्यापार के लिये अपनी कोठी कर सकते हैं. तथा वे सुरत, खंभात, अहमदाबाद और घोघा में व्यापार कर सकते हैं। इनसे 21) सैकड़ा महसूल लिया जाय तथा इनका एक एलची मुगल दर्बारमें रहे । सन् १६१४ में सर टामसरो प्रथम एलची मुगल दर्बारमें नियत हुआ । इसने बादशाह जहांगीरसे और भी हक प्राप्त किये। अंग्रेज व्यापार करने लगे । उस वक्त यहांसे कपड़ा खरीदकर विलायत बहुत जाता था । अंग्रेज लोग कपड़ा बनानेवालोंको पेशगी रुपया दे माल बनवाते थे और विलायत भेजते थे । सूरत नगर १९७३ से १७५९ तक मुगल बादशाहोंके कबजेमें रहा । इस वक्त यह बहुत तरक्कीपर जाना । सूरतमें व्यापारकी था। यहांसे कपड़ा, रुई, किनखात्र, मसरू, वृद्धि व यूरुपको किनारी, कसब, कारचोब, शाल, मसाला, कपड़ा आदि हीरा, मोती, मीनाकारी, अफीम, अनाज, मिठाई, आदि परदेशको जाते थे और इंगलैंड से सीसा, लोहा, लोहाका तय्यार माल, चीनसे बिलौरी सामान या रेशम, सुमात्रासे मसाला, ईरान से मोती, गलीचा, मेवा, अरबसे अंतर वगैरह, मलावार से देशी उनका कपड़ा, बंगालसे रेशम और शकर, मालवासे अफीम इत्यादि सामान Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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