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अध्याय सातवा।
शके १२०२ प्रमाथी संवत्सरे कार्तिक सुदी १० सोमवार मैं संबुदेव गोमट्टस्वामीके वास्ते गदियानेकी दूध दररोज देऊंगा।
तथा गोमट्टस्वामीके सीधे हाथकी तरफ इमारतमें कूष्मांडिनी देवांकी मूर्ति है जिसके नीचे लेखका भावार्थ है-- .
"नयकीर्ति सिद्धान्त चक्रवतीका शिष्य बालचंद्रदेव उनका शिष्य कीर्तिसेठीका पुत्र बम्मसेठीने इस यक्ष देवीकी प्रतिष्ठा की।'
कई स्थानों में पत्थरके खुदे हुए प्रतिमाके समीप वत्स सहित गौ, हस्ती, सूर्य, चंद्र हैं, इसका हेतु ब्रह्मसूरि शास्त्री कहते हैं की दान देते समय ये चार साक्षी रखके दान देना ऐसा शास्त्राधार है जिससे यहाँ बताए हैं। चामुंडराजाके पहले कृष्णराजा हुआ है उसके समयका शिलालेख चिकपेटा याने छोटे पहाड़ पर है। अक्षर धवल महाधबलके लिपिके हैं। इसका वर्णन वृहत् हरिवंशमें है । मैसूरका राजा कृष्णराजकी माता देवीरमणी जन धर्मी थी जिसने चिकपेटाके ऊपर श्रीआदिनाथके जीर्ण मंदिरको फिरसे बनवाया । इस ही मंदिरमें श्री भद्रबाहुका चरित्र चंद्रगुप्त राजाके समयका पत्थर में खुदा हुआ है। चिकपेटाके ऊपर श्री भद्रवाहुके पादुका लंबे एक बालिस्त ८ अंगुल हैं। वहाँ बालबोध अक्षरमें लिखा है__"भद्रबाहु स्वामी पादुका जिनचंद्र पणमिदं"
और एक यंत्र निकला है।
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