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३०८ ] अध्याय आठवाँ । पढी तथा दि० जैन परीक्षालयद्वारा प्रवेशिकाकी तीन परीक्षाएं धर्म में पास की। इसवक्त लाहौरके बाबू ज्ञानचंदने आत्मानुशासन और मोक्षमार्ग प्रकाशको तथा देवबंदके जैनीलालने बड़े रत्नकरंडश्रावकाचारको छापकर प्रसिद्ध कर दिया था। सेठनी छपी पुस्तकें रखते हैं यह प्रसिद्ध हो गया था, इससे जो कोई भी पुस्तक छपाता था सो पहले सेठजीके यहाँ भेनता था। सेठनी स्वयं पसंद कर यदि उपयोगी समझते तो उसकी बहुतसे कापियां बांटने व न्योछावर लेकर देनेके लिये मंगा लेते थे। नए छपे हुए ग्रंथोंको वैराग्यउत्पादक जान सेठजीने मगनबाईजीसे बांचनेको कहा । धीरे २ मगनबाईजीने आत्मानुशासन, रत्नकरंड श्रावकाचार, व मोक्षमार्गप्रकाशका स्वाध्याय करके अपनी परिणतिमें बहुत फेर कर लिया और स्वाध्यायको बराबर जारी रक्खा । पं. फतहचंद लालनको अध्यात्मज्ञानका अभ्यास था और
___ यह सेठ माणिकचंदजीके पास मिलने आया पं. लालनका उपदेश करते थे। मगनबाईजी चौपाटी बंगलेपर सेठजी
के पास ही रात्रिको बैठकखानेमें बैठती थीं। जब सेठजी आनेवालोंसे बात करते तब यह भी सुनती और अपने अनुभवको बढ़ाती थी। पं. लालन द्वारा आत्माकी कथनी सुननेसे मगनबाईजीको अध्यात्मिक रुचि भी हो गई । युवावस्था होनेपर भी इसके भाव वैराग्यमें भर गए और यह पिताकी आज्ञामें चलती हुई, शास्त्रीसे विद्या अभ्यास करती हुई, स्वाध्यायमें मन लगाती हुई अर्थात् ज्ञानके सुखमें मगन होकर धीरे पतिवियोगके शोकको बिलकुल भूल गई और अपने जीवनको ज्ञान मित्रके साथ कल्लोल करनेमें सफल
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