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________________ लक्ष्मीका उपयोग | [ १९३ की बेदी सिंहासनादिके बनवाने में करीब २०००) आपने खर्च किये । मंदिरजीको ठीक कराने में सेठ माणिकचंद प्रायः सूरत आते जाते रहे । जब यह मंदिर बन चुका तब संवत् १९३९ में इसकी जीर्णोद्धार प्रतिष्ठा उक्त सेठोंने बम्बईके दूसरे सेठ माणिकचंद लाभचंद चौकसीके साथ मिलकर बहुत धूमधामसे की जिसमें ८०००) खर्च हुए । भट्टारकं १०८ श्री गुणचंद्रजी प्रतिष्ठाकारक थे। दो तीन नवीन प्रतिमाएं भी आईं थीं इससे पंचकल्याणक विधान हुआ था । शोलापुर से दो उपाध्याय विधि कराने आए थे । इस उत्सव में गुजरातके बहुत लोग एकत्र हुए थे, संख्या १००० के होगी । । इस समय में प्रसिद्ध क्षुल्लक धर्मदासजी भी आए थे। आप बड़े आत्मानुभवी थे, आपने क्षुल्लक धर्मदासजी । सम्यग्ज्ञानदीपिका आदि कई ग्रंथ बनाकर छपवाए हैं। इनके सहपाठी भट्टारक वीरसैन कारंजा व पीतांबरदासजी पारोला आदि हैं । यह तीर्थभक्त भी थे, शिखरजीकी सेवा में बहुत लीन रहते थे, बहुतसी धर्मशाला इनके उपदेशसे वनीं, राजा पालगंज उस समय पार्श्वनाथसिंह थे, जो क्षुल्लकजीका बहुत सन्मान करते थे । राजाके मकान के पास प्राचीन दि० जैन मंदिर है जिसमें बहुत प्राचीन श्री पार्श्वनाथजीकी पद्मासन मूर्ति अतिवीतराग ध्यानाकार है। यह मंदिर जीर्ण होगया था । आपने राजाको उपदेश देकर दुरस्त करवाया और फिर जीर्णोद्धार प्रतिष्ठा की जिसका शिलालेख वहाँ पत्थर में खुदा हैं। उसकी नकल यह है १३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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