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संयोग और वियोग |
अध्याय आठवाँ ।
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संयोग और वियोग ।
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सेठ माणिकचंद जब २ सूरत जाते थे इनकी दोनों पुत्रियोंके लिये मांगपर मांग आती थी और निकट फुलकुमरी और मगन- सम्बन्धी वार २ टोंकते थे कि इनका न मतीकी सगाई | करना चाहिये अतएव सेटजी जब चंदावाही धर्मशालाको खोलने सं. १९४८ में सूरत गए थे तत्र फूलकुमरी और मगनमती दोनोंकी सगाई सूरत में ही पक्की कर ली थी। सूरत में एक विसा हुमड़ त्रिभुवनदास ब्रिजलाल रहते थे जो मध्यमस्थितिके गृहस्थ थे । इनके पुत्रका नाम मगनलाल था यह साधारण पढ़ा हुआ व बिसी कुआचरण में नहीं था तथा अपने पिता के साथ व्यापार में लगा हुआ था। फूलकुमरीकी सगाई इसीके साथ पक्की हुई। इन दोनों बहनों में फूलकुमरी बहुत भोली व सीधी थी परंतु मगनमतीका रूपदर्शनीय था । इसके सम्बन्धको अच्छे २ चाहते थे। सूरत में एक धनाढ्य व्यापारी तासवाला वेणीलाल केशुरदासकी कोठी प्रख्यात है। इनके दो पुत्र थे नेमचंद और जयचंद दोनों साथ २ रहते थे। किसीको कोई सन्तान न थी । तब नेमचंद्र ईडरसे खेमचंद नामके लड़केको दत्तक लाए । इसी खेमचंद नेमचंद के साथ भगनमतीकी सगाई पक्की हुई। इस लड़के को साधारण लिखना वांचना आता था | स्वभाव मर्यादाशील, मिलनसार प्रेमालु और धैर्यवान था । स्वरूपमें भी सुन्दर था पर धार्मिक शिक्षा व आचरणकी आदत न डाले जानेसे इसका मन
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