SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 285
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४४ ] अध्याय आठवाँ । सांसारिक बातोंमें विशेष था। अपने सांसारिक मित्रोंके साथ पैसा खर्च करनेमें हाथ खुल्ला था। बड़े आदमीका दत्तक पुत्र प्रायः ऐसा ही होता है । उसको पैसे खर्चते हुए दर्द नहीं मालूम होता जब इसकी सगाई हुई तब इसकी अवस्था १९ वर्षकी थी। गु.सं० १९४९ में सेठ माणिकचन्दजी सर्व कुटुम्ब सहित सुरत गए और इन दोनों कन्याओंका विवाह दोनों पुत्रीयोंकी लग्न। लगातार एक साथ ही किया । इन विवाहमें . सेठजीने बहुत रुपया खर्च किया तो भी वह १२००२)से अधिक न होगा। तासवालेने भी बड़ी धूमधाम की गई। चंदाबाड़ी में ही सेठ माणिकचंदनीने समारंभ किया । दोनोंकी वरात्क बिदाका जुलूस बहुत सामानसे निकला। वर और बधूकी सवारी हाथीपर हुई। नगरमें गाजे बाजोंकी भरमार ऐसी हुई कि नगरभर इनके देखनेके लिये उमड़ आया। सूरतमें बिरादरीके कई जीमन दिये । बहुतसे सम्बन्धी व मित्र बाहरसे बुलाए गये थे उनकी खातिर की गई । नगरके प्रतिष्ठित पुरुषोंको दावत दी गई और नौकर चाकर मुनीम व सम्बन्धियोंको बहुत कीमती पोशाकें दी गई। इस समय फूलकुमरी १५ तथा मगनमतीकी १३ वर्षकी आयु थी। श्रीमती चतुरबाईकी गोदमें जो छोटा पुत्र था सो सुरतमें लग्नके समयपर ही यकायक बीमार होकर पुत्रकी आशासे १। बर्षकी उम्रमें चल बसा। सेठजीको इस निराशता। तरह पुत्रकी फिर निराशता हो गई। वास्तवमें संसार इसीका नाम है एक तरफ हर्ष होता हैं तो दूसरी तरफ शोक हो जाता है । थोड़े दिन पीछे चतुरबाईको Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy