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दानवीरका स्वर्गवास। [८८७ आप शामके दो घण्टे प्रायः इसी कार्यमें व्यतीत करते थे। सैकड़ों कोसोंकी दूरीसे आये हुए यात्री जिस तरह आपकी कीर्तिकहानियाँ सुना करते थे, उसी तरह प्रत्यक्षमें भी पाकर और आपके मुँहसे चार शब्द सुनकर अपनेको कृतकृत्य समझने लगते थे।....
विलासिता और आराम-तलबी धनिकोंके प्रधान गुण हैं। पान्तु ये दोनों बातें आपमें न थीं। आप बहुत ही सादगीसे रहते थे और परिश्रमसं प्रेम रखते थे। अनेक नौकरों चौकरोंके होते हुए भी आप अपने काम अपने हाथसे करते थे। इस ६३ वर्षकी उमर तक आप सबेरेसे लेकर रातके ११ बजे तक काममें लगे रहते थे।....
सेठजीकी दानवीरता प्रसिद्ध है। उसके विषयमें यहाँ पर कुछ लिखनेकी जरूरत नहीं । अपने जीवन में उन्होंने लगभग पाँच लाख रुपयोंका दान किया है जो उनके जीवनचरितमें प्रकाशित हो चुका है। उसके सिवाय उनके स्वर्गवासके पश्चात् मालूम हुआ कि सेठजी एक २॥ लाख रुपयेका बड़ा भारी दान और भी कर गये हैं जिसकी बाफायदा रजिस्ट्री भी हो चुकी है। बम्बईमें इस रकमकी एक आलीशान इमारत है जिसका किराया ११००) महीना वसूल होता है। यह द्रव्य उपदेशकभण्डार, परीक्षालय, तीर्थरक्षा, छात्रवृत्तियाँ आदि उपयोगी कार्योंमें लगाया जायगा। इसका लगभग आधा अर्थात पाँच सौ रुपया महीना विद्याथियोंको मिलेगा।
सेठजीके किन किन गुणोंका स्मरण किया जाय; वे गुणोंके आकर थे। उनके प्रत्येक गुणके विषयमें बहुत कुछ लिखा जा सकता है।....
"जैनहितैषी " ज्येष्ठ वीर सं० २४४..
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