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८८६] अध्याय तेरहवां । करनेका इतना अधिक प्रभाव कैसे पड़ गया। जिन कामोंमें जैनसमाजका कोई भी धनि खच करनेको तैयार नहीं हो कता, उस काममें सेठजीने बड़े उत्साहसे द्रव्य खर्च किया है । दिगम्बरजैन-डिरेक्टरी जो छपकर तैयार हुई है-एक ऐसा ही काम था । इसमें सेठजीने लगभग १५ हजार रुपये लगा दिये हैं। दूसरे धनिक नहीं समझ सकते कि डिरेक्टरी क्या चीन है और उससे जैनसमाजको क्या लाभ होगा। विलायतमें एक जैन छाप्रावास ' बनवानेकी ओर भी सेठजीका ध्यान था; परन्तु वह पूरा न हो सका।
दिगम्बर जैनसमाजमें इस समय कई पक्ष या दल हो रहे हैं। जिसे देखिए वही अपने पक्षका गीत गाता है और दूसरेको नीचा दिखानेका प्रयत्न करता है; परन्तु सेठजीका पक्ष इन सबसे निराला था, उनकी दृष्टि सदा समूचे जैनसमानके कल्याणकी ओर रहती थी। किसी भी पक्षसे वे द्वेष न रखते थे। जब कभी इन पक्षों में लड़ाई झगड़ोंका मौका आता था और वह शान्त न होता था तब आप तटस्थवृत्ति धारण कर लेते थे। ऐसे अनेक मौके आये हैं जब अखबारोंमें आप पर बहुत ही अनुचित आक्रमण हुए हैं; परन्तु आपने उनमे से एकका भी खण्डन या परिहार करनेका प्रयत्न नहीं किया है ।....
धनवैभवका मद या अभिमान सेठनीको छू तक न गया था। इस विषयमें आप जैनसमाजमें अद्वितीय थे। गरीबसे गरीब ग्रामीण जैनीसे आप भी बड़ी प्रसन्नतासे मिलते थे-उससे बातचीत करते थे और उसकी तथा उसके ग्रामकी सब हालत मान लेते थे।
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