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________________ ४१२ ] अध्याय दशवां । पुरके प्रख्यात सेट वालचंद रामचंदकेसभापतिद०म० जैन सभाका त्वमें हुआ। शिक्षा खातेमें २०००) की नैमित्तिक अधिवेशन आमद हुई । सेठजीको अभिनंदन देने वाले ___ तार व पत्र दोनों भट्टारक, लल्लूभाई प्रेमानंद व गुरुमुखराय सुखानंद आदिके आए थे सो अध्यक्षने सुनाए । सभाके आश्रयमें बेलगांवमें एक संस्कृत पाठशाला भी स्थापित हुई तथा शास्त्री रक्खा गया। सेठ नाथारंगजीवाले सेठ पन्नालालजी मरते समय २५०००) दान कर गए थे, उसकी व्यवस्थाके लिये ट्रस्ट रु०२५०००)के दान कमेटी नियत हुई जिसमें सेठ माणिककी व्यवस्था। चंदजी व सेठ हीराचंद नेमचंद भी दृष्टी नियत हुए । तय हुआ कि इसके व्याजसे ४० ) सैकड़ा धर्मशिक्षामें, २२॥) सैकड़ा इंग्रेजी शिक्षामें, २२॥) रु. सैकड़ा प्राचीन जैन ग्रंथोद्धारमें व शेष जैन अनाथोंकी मददमें खर्च हो। इस फंडसे पंचाध्यायी, परीक्षामुख, प्रमेयकमलमार्तड, अष्टसहस्री आदि कई उपयोगी ग्रंथ मुद्रित हुए हैं व बहुतसे छात्रोंको सहायता मिल चुकी है। सेठ माणिकचंदने कोल्हापुरसे लौटकर वर्षाकाल शांतिसे व्यतीत करते हुए भादों मासके दशलक्षणी हीराबाग धर्मशाला पर्वमें बम्बई में धर्मजागृति फैलाई तथा बड़ी (बम्बई)में १२५०००) भारी फिकर यह हुई कि धर्मशाला शीघ्र का दान । बन जानी चाहिये । आपने कावसजी पटेल तालावके पास कांदावाड़ीके नाकेपर एक बहुत ही मौकेकी जगह तनवीन की जो शहरके बिलकुल बीच में Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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