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________________ महती जातिसेवा प्रथम भाग । [४११ वार्षिक व प्रत्येक कक्षामें एक फ्रीशिप तथा बोर्डिंग बांधनेको जमीन प्रदान की तथा सेठ माणिकचंद पानाचंद जौहरीके कुटुम्बकी प्रशंसा की और प्रगट किया कि आज यह इमारत उनके पूज्य पिताके नामसे प्रसिद्ध होगी अर्थात् "सेठ हीराचंद गुमानजी विद्या मंदिर " तथा इसके खोलनेके लिये महाराजसे प्रार्थना की तब महारानकी तरफसे दीवान साहब रा० ब० सबनीसने भाषण देते हुए कहा कि"प्राचीन कालमें जैन लोग अत्यन्त उन्नतिमें प्राप्त थे। उस समय उनके महत्व भोगनेके व सुधार करनेके जैन समाजपर अजैन बहुतसे प्रमाण हैं । जैन शास्त्रकारोंने ज्ञानविद्वानकी सम्मति। भंडारको बड़ा करके महत सहायता की। “ अहिंसा परमो धर्मः " के तत्वको उन्होंने बहुत ही उत्तम रीतिसे पाला । अब भी ये उसी उन्नतिको पहुंचे । इसके लिये अब इन्होंने आलस्य छोड़ा । सेठ माणिकचंद और उनके बंधुओंने जो शिक्षणकी सुगमताके लिये यह भव्य इमारत तय्यार करा दी है उसको खोलते हुए मुझे बड़ा ही आनंद आता है। फिर महारान साहबने इमारतको खोला । सेठ माणिकचंदजीने हारतुरोंसे महाराजको सन्मानित किया। सभा सानन्द विसर्जन हुई। तब महाराज और कर्नल फेरिसने इमारतको अच्छी तरह देखकर यही कहा कि बहुत अच्छी इमारत तय्यार कराई गई है । उस समय मकानका फोटो भी लिया गया । दोपहरको द० म० जैन सभाका नैमित्तिक अधिवेशन शोला Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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