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________________ ४१० ] अध्याय दशवां । ठाकुरदासके लगातार परिश्रमसे और सेठ माणिकचंद पानाचंदके करीब २००००) के खर्चसे यह डाइरेक्टरी छपकर सन् १९१४ में १४३१ सफोंकी पुस्तक तय्यार हो गई है जो ८) में बम्बई या सूरतसे प्राप्त होती है । ___ सेठ माणिकचंदनी काशीसे लौटकर आए कि उनको कोल्हा पुर जानकी फिकर पड़ी। वहांकी इमारतके कोल्हापुर जैन बोर्डि- लिये आपने २२०००) का निश्चय किया गकी नई इमारतका था तथा उत्तम कारीगर भेनकर अपने पसन्द वास्तुविधान। किये हुए नकशेसे इमारत बंधवाई थी। पत्र व्यवहार करके निश्चय किया गया कि नई इमारत खोलनेकी क्रिया भी कोल्हापुर महाराज के करकमलोंसे ही कराई जाय । इसके लिये ता. ९ अगस्त १९०५ नियत हुई। इस समारंभके लिये इमारतके आगे एक सुशोभित शामियाना लगाया गया था । बम्बईसे सेठ माणिकचंद, परोपकारी सेठ रामचंद्र गांधी व नवयुवक होनहार ठाकुरदास भगवानदासको लेकर पहुंचे। शोलापुरसे सेठजीके मित्र सेठ हीराचंद नेमचंद, बालचंद रामचंद तथा अन्य आसपापके कई नगरोंसे बहुत जैन मंडली उपस्थित हुई । सबेरे ७॥ बजे सब समा जुड़ गई। राज्यके सरदार आने लगे । ठीक ९ बजे श्रीमन्महाराज छत्रपति सरकार शाहु महाराज कर्नल फेरिसके साथ दरबारमें पधारे । प्रथम ही कोल्हापुर विद्यालयके मंत्री रा. रा. अण्णाप्पा बाबाजी लढे एम० ए० ने इंग्रेजीमें भाषण दिया जिसमें महाराज साहबकी कृपाकी अतिशय सराहनाकी कि जिन्होंने सभाके शिक्षणफंडमें २०००) नकद, ३००) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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