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मह ती जातिसेवा प्रथम भाग । [४०९ सेठ माणिकचंदनीकी ज्येष्ठ भगिनी मंछाबाईके एक पुत्र सेठ
चुन्नीलाल झवेरचंद थे और दूसरी एक कन्या सेठ ठाकुरदास भग- धोली बहन थी। इसके और सेठ भगवानदास वानदास और दि- कोदरजीके एक परोपकारी साहसी पुत्र ठागम्बर जैन डाइ- कुरदास उत्पन्न हुआ था। यह पढ़ने में रेक्टरी । शौकीन था । १२ वर्ष तक सूरतमें रहकर
शालामें अभ्यास किया, फिर बम्बई जाकर अपने मामा चुन्नीलालके साथ रहने लगा और संस्कृत द्वि० भाषा सहित इंग्रेजीका अभ्यास करते हुए मैट्रिक पास किया और प्रिवियस तक शिक्षा ली । सं० १९५९ से जौहरी माणिकचंद पानाचंदनीकी दुकान में बैठने लगे। यह जिस काममें लगाया जाता था दिलसे करता था ऐसा देखकर सेठ माणिकचंदनीने इसके लिये दिगम्बर जैन डाइरेक्टरीका काम नियत किया। दि. जैनियोंकी कहां२ वस्ती कुल भारतमें है, किस२ जाति के हैं, कहां२ मंदिर व पाठशाला हैं इत्यादि व्यवस्थाके जाने विना कुल समाजका सुधार नहीं हो सकता। इस कामको आवश्यक जानकर भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महासभाने अपने हाथमें लिया था पर द्रव्य व उत्साहके अभावसे यह काम कुछ चला नहीं। सेठजीके चित्तमें इसकी बड़ी भारी आवश्यक्ता प्रगट हुई थी। ठाकुरदासनीने फार्म छपवा कर सर्व स्थानोंमें भेजे पर बहुत ही कम भर कर आए। तब सेठजीकी सम्मतिसे प्रवीण मनुष्य भेजे विना फार्म भरकर नहीं आसक्ते ऐसा निश्चयकर जैनमित्र वर्ष ६ अं० ९ में यह नोटिस दिया कि दौरा करनेके लिये जैनी भाई चाहिये।
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