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अध्याय दशवां। हुई गंगातटपरे श्रीसुपार्श्वनाथस्वामीके मंदिरके नीचेकी बड़ी धर्मशाला पाठशालाके लिये नियत कर दी। यह स्थान काशी भर में बड़ा ही रमणीक है। नौकामें जानेवालोंकी दृष्टि इस बड़ी इमारतको देख चकाचौंध खानाती है । महूर्तके दिन ५ छात्र भरती हुए, ३ सुयोग्य विद्वान् अध्यापक नियत किये गए।
यह पाठशाला अब स्याद्वाद महाविद्यालयके नामसे प्रसिद्ध है। इसने समाजमें संस्कृत विद्याकी रुचि पैदा करा दी है । ३१ जुलाई १९१५ तक ४० विद्वान् यहांसे शास्त्रीय विशारद आदिकी सर्कारी व बम्बई परीक्षालयकी परीक्षाओंको पास करके गए हैं जो समाजका काम कर रहे हैं। जैसे१ न्यायाचार्य ५० गणेशप्रसादजी-अधिष्ठाता जैन पाठशाला, सागर २ , पं० माणिकचंदजी-अध्यापक जैन सिद्धांत विद्यालय,
मोरेना। ३ पंडित बद्रीप्रसाद अध्यापक, जैन पाठशाला, कचनेर । ४ ५० वृजलाल
जैन महाविद्यालय, मथुरा । ५ पं. निद्धामल , जैन पाठशाला, ललितपुर । ६६ पं० कुमारैय्या , जैन पाठशाला कारकल (दक्षिण) ७ पं० उमरावसिंह , स्याद्वाद महाग्धिालय-काशी। ८ वर्णी नेमिसागर धर्म प्रचारक, दक्षिण प्रान्त ।
सेठ माणिकचंदजीको इस संस्थासे इतना प्रेम था कि जैसा आगे मालुम होगा । आपने स्वयं २०००) देकर २००००) के करीब चिरस्थायी फंड करा दिया व ६०) मासिककी मदद जौहरी महाजन कांटा बम्बईसे सदाके लिये करा दी ।
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