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________________ महती जातिसेवा तृतीय भाग । [६६७ धर्मशाला आदिके सम्बन्धमें बहुत वार्तालाप की । फिर हॉलमें विराजमान होनेपर मंगलाचरण आदिके पीछे श्रीमान् सेठ माणिकचंद हीराचंद जे० पी० और सेठ गुरुमुखराय सुखानन्दजीने दिगम्बर जैन सभाकी ओरसे एक मनोहर कासकेटमें अभिनन्दन पत्र अर्पण किया। इसका उत्तर महाराजकी ओरसे कहा गया कि मैंने जो कुछ किया है इसमें सिर्फ अपना फर्ज अदा किया है। इस वर्ष अलाहाबादमें बड़े दिनोंमें कांग्रेसका अधिवेशन था ___ तथा प्रदर्शनीकी बड़ी धूम थी। ऐसे अवअलाहाबादमें बोर्डिंग- सरपर सेठनी भी श्रीमती मगनबाईनीको का निश्चय व सेठजीका लेकर प्रयाग आए। ब्र० शीतलप्रसादनी, गमन । कुंवर दिग्विजयसिंह, पं० अर्जुनलालजी सेठी, सेठ हुकमचन्दजी, पंडित गणेशप्रसादजी सागर, मुंशी चम्पतरायजी आदि अनेक परदेशी जैनी आए थे । इस वक्त सेठजीके आगमनका उद्देश्य प्रयाग बोडिंगका निश्चय करना था । सेठनी और मगनबाईजीने धर्मपत्नी लाला सुमेर चंदजीसे मिलकर अच्छी तरह समझाया कि आप अपनी इस पच्चीस हज़ारकी रकमको अपने पतिके नामसे बोर्डिंग कायम करनेके लिये ही अर्पण करके पुण्य और यशका लाभ लेवें। ब्र० शीतलप्रसादनीने भी समझाया कि यह सर्व धर्मका काम है। धार्मिक शिक्षा लेनेसे कॉलेजके छात्रों का बहुत कल्याण होवेगा। दूसरी तरफ सेठजीने प्रयागके भाईयोंको राजी किया कि वे इस काममें मन वचन कायसे मदद देवें । ता० २८ और २९ दिसम्बर १० को Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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