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________________ ६६६ । अध्याय बारहवां । प्रेरणासे ४०१) कस्तूरचंदजीने, २५१) सेठ हीराचंद गुमानजी व ५१) तीर्थभक्त स्वर्गवासी सेठ चुन्नीलालकी धर्मपत्नी जड़ावबाईने दिये थे । वास्तवमें सेठनीका घरानाभर ही उदारचित्त धारी है। फतहपुर (सीकर) निवासी सेठ गुरुमुखराय सुखानंदकी कोठी बम्बईमें बहुत प्रसिद्ध है । आप दिगम्बर महाराज सीकरको जैन समाजमें अग्रगामी उदारचित्त धर्मप्रेमी हीराबागमें ____सज्जन हैं । किसी कारणवश सीकर महाराज मानपत्र। आपसे अति प्रसन्न हुए तब आपसे कहा कि जो कोई हमारे लायक काम हो सो कहो तब दयालुचित्त सेठने अपने स्वाथको त्यागकर यह अभयदान मांगा कि सीकर, लछमनगढ़, फतहपुर, और रामगढ़ में भादों सुदी ५ से १४ तक १० दिन दशलाक्षणो और हर मालकी चौदसको कोई जीव हिंसा न हो-कसाईखाने बंद रहें। महाराजने यह स्वीकार करके सेठ सुखानंदनीको पत्र मिती मगसर वदी १३ संवत् १९६७ को लिख दिया और राज्यमें घोषणा करनेकी प्रतिज्ञा की । इस दयालुताको देखकर बम्बई दिगम्बर जैन प्रां० सभाने ता० ३ दिसम्बरको हीराबाग लेकचर हॉलमें श्रीमान् महारानके सन्मानार्थ सभा की। श्रीयुत् खेमराज श्रीकृष्णदास वेंकटेश्वर ' पत्रके स्वामी, सेठ ओंकारनी कस्तूरचंद आदि ५०० से अधिक भाई सभा भवन में विराजित थे । श्रीयुत १०८ श्री माधवसिंहजी महाराजकी सवारी मोटर द्वारा ७ बजे रात्रिको पधारी। स्वागतके लिये सेठ माणिकचंदजी आदि कई भाई द्वारपर खड़े थे। उनके साथ पहले आप दफ्तर तीर्थक्षेत्र कमेटीमें आकर बिराजे और सेठ माणिकचंदजीसे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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