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________________ दानवीरका स्वर्गवास। दुर्लभ ही मानव-तनु लाधे पुण्यबले जीवां । कांत, सदय, अव्यंग असा नरदेह सौख्य-टेवा ॥ उच्च वस्तु न्यूनत्व पावती नीच बहुत जगतीं। मनुज, रत्न, गुण, धर्म असो सकलांचि हीच रीति ॥ अखिल जीवसृष्टीस अभयकर श्रेष्ठ दयाधर्म । उच्चस्थानी तया ठाव जा धम मूर्त-शर्म ॥ सत्य सनातन अनुपम सुंदर परम धर्म ऐसा । असे अहिंसा प्रमुख जयामधिं जैन धर्म खासा ।। प्रसिद्ध श्रावक विशुद्ध विलसे भुवनीं इंदुपरी । __निपजे " नर-माणिक्य " तयामधिं वर्णवे न थोरी । लक्ष्मीचे चिरनिवास-स्थानचि मुंबापुरि नगरी । ____ भरतभूमि भूषण इहलोकी मानव-इंद्रपुरी ।। पूनित केली सुरत भूमिका जन्मा येवोनी । विराजिती मुंबापुरिमाजी माणिक गुणखाणी ।। दानवीर महशूर अस। माणिक्यचन्द्र श्रेष्ठी। ___औदार्य शृंगारिलि अक्षय खिल जैन-सृष्टि ।। दिधली पुष्टी धर्म तरूतें धनबल भाक्ति जलें। शांतिवायुमें आंग्लराज्यि तो स्वातंत्र्य डोले ॥ अतिशय सिद्धक्षेत्रं तीर्थं तदीय शक्तीने । विराजिती वहरांत फुललि की धर्म-द्रुम-सुमनें ॥ ठायी ठायीं विद्यासदने जैनशिशुस्तव तीं। स्थापुनि केली सकल भारती जिनविद्योन्नति ती ॥ चिरशिवदायक, भेषजमंदिर, विद्यार्थी-सदने । __ रुग्णमंदिर, चैत्य उठविले, मूर्तिमंत पुण्ये ॥ आखिल हिंदु पांथस्थां सुंदर धार्मिक नव शाला । स्थापियल्या बहु प्रमुख शोभते हिरावाग' अतुला ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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