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________________ लक्ष्मीका उपयोग । [२२७ सेठ माणिकचंदने सं० १९४४ में नवलचंद सेठको भेना। सेटनी सपत्नीक आए और यात्रा करके बहुत आनपालीतानाके लिये सेठ न्दित हुए। धर्मचंदजी भनन भाव व पूनाने नवलचंदका प्रयत्न । बहुत निपुण थे । नवलचंदनीका मन अपने में मोहित कर लिया। यह वहाँ धर्म सेवन करते हुए एक मास ठहरे। इस बीचमें इन्होंने सर्व व्यवस्था ठीक कराई । घोघा बन्दरमें त्रिभुवन बावा नामके एक खटपटी इलाल थे । वह भी इनके साथ रहे । इन्होंने राज्यसे पुरानी धर्मशालाको छुड़ाया।२१००)का व्याज जोड़के रु. ३२४८) रानाको भावनगरमें जो १८०००) तीर्थके जमा थे उसमेंसे दिये। राज्य नये मंदिरवाली जमीनका रुपया मांगता था और इसी लिये वहाँ भी कुछ काम नहीं करने देता था अतएव सेठ नवलचंदने १०-) गजके भाव में फैसला करके रु० १४०००) उस १८०००) मेंसे देकर ज़मीनको अपने कबजेमें किया और मंदिर बनानेका काम शुरू किया जाय इस विचारमें दृढ़ हुए। बम्बई आकर भाइयोंसे सब हाल कहा । सेठ माणिकचंदजी - नवलचंदकी कारवाई पर बहुत प्रसन्न हुए पालीतानामें नये म ' और भावनगरवालोंको लिखा कि आप पांच न्दिरका प्रबन्ध । प। आदमी चंदेके लिये बाहर निकले तथा मंदि - रका काम शुरु करा दें। जो रुपया खर्चको चाहिये वह हमारी दूकानसे मंगाते रहें, चंदा आने पर वसूल हो जायगा। अब इस शुभ कार्यमें देर न करें । भावनगर व घोघावालोंने इस बातको स्वीकार किया। सेठ माणिकचंदजीसे १०००) मंगाकर काम शुरु कराया Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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