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________________ ५८० ] . अध्याय ग्यारहवा। ज्ञानार्जनिं गृहिसंघ पुढे हों त्रीसमाज मागें ॥ उरला देखुनि भगिनीहृदयी चिंता बहु जागे ॥ 'अनभिषिक्त भूपा' ची कन्या धर्मशील बाला ॥ स्वी उन्नति होण्यास स्थापी श्राविकाश्रमाला' ॥ त्यां आश्रमिच्या आम्ही बाला ज्ञानार्जन करुनी ॥ समें बागोनी जाऊं भावोदधी तरुनी ॥ स्त्रीवर्गावर मगनबाईने केला उपकार ॥ जन्मोजन्मीं न हों! तयाचा आम्होंतें विसर ॥ अनभिषिक्त राजा करवी हो ! समाजहितकृत्ये ॥ स्त्रीउन्नतिपर कार्ये होवो ! भगिनीच्या हस्ते ॥ भो ! जिनवरा जगन्मंगला, ठेव सुखी आमुची ॥ राजकन्यका मगनबाह ही पित्यासवें साची ॥ १ ॥ सेठजी बम्बई आकर तुर्त ही श्री तारंगाजी पर्वतको ___ रवाना हुए ( यहां भी शीतलप्रसादनी तारंगाजी में बम्बई प्रा० शरीरमें रोगके कारण न जा सके ) जहां सभा व सेठजी। बम्बई प्रांतिक सभाका छठा वार्षिकोत्सव मिती माघ सुदी २ से था । इस जल्सेके. नियत किये हुए अध्यक्ष सेठ हीराचंद अमीचंद, शोलापुरनिवासी, श्रीमान् दानवीर सेठ माणिकचंद हीराचंद जे० पी० व अन्यों के साथ माघ सुदी १ प्रातःकाल अहमदाबाद पहुंचे । जैसिंहभाई हरजीवनदासकी तरफसे बालन्टियरोंने हातोरे आदिसे सन्मानित किया। दोपहरको खेरालू स्टेशनपर आए । स्टेशनपर २०० भाइयोंके साथ सेठ लल्लूभाई लक्ष्मीचंद अध्यक्ष स्वागत कमेटी उपस्थित थे । स्वागत करके अनेक पताकाओं के साथ गानते बजाते धर्मशालामें गए। यहां शामको दिगम्बर और श्वेताम्बर भाइयोंकी सभा हुई। जिसमें श्वे० Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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