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________________ ४०० ] अध्याय दशवां । मनी, जानकीलालजी, शीलचंदनी, मुन्नालालजी आदि भी आए थे। दौलतरामजी गोम्मट्टसारके ज्ञाता, विद्वान व वैराग्य संयुक्त थे । इस उत्सवमें लखनऊ से शीतलप्रसाद भी आए थे । जबसे इनकी पत्नीका देहान्त हुआ था तबसे धार्मिक कार्यों में विशेष मन था सो रेलवे दफ्तरसे छूटी लेकर इस महान उत्सवको देखने व उपदेश करने चले आए थे। शीतलप्रसादको सभामें व्याख्यान देनेका बहुत शौक था । कलकत्तमें मासिक व पाक्षिक सभामें व लखनऊकी सभाओंमें व महासभाके अधिवेशनों में भी व्याख्यान दे चुके थे। इस उत्सवमें सभा होना बड़ा कठिन था। कोई खास प्रबन्ध नहीं था। सेठ माणिकचंदजीको भी सभाका बहुत शौक था। चैत्र सुदी १२ की रात्रिको आपने ठान लिया कि सभा अवश्य कराएंगे । आप एक छोटेसे मंडपमें गए। वहां स्वयं खड़े होकर बिछौना बिछवाया, बुलावा दिलवाया और प्रथम ही १०-२० आदमियोंको लेकर बैठ गए, इतने में सभा जुड़ गई । उस समय सेठ माणिकचन्दके उत्साह व परिश्रमको देखकर बड़ा आनन्द होता था। इसी रात्रिको हकीम कल्याणरायनी, शीतलप्रसादजी, पन्नालालजी गोधा, चिरंजीलाल अनाथाश्रन हिसार, और माणिकचंद विद्यार्थीके व्याख्यान हुए। सेठ माणिकचन्दजी और पं० धन्नालालजीके उद्योगसे मालवा प्रांतिक सभाकी नियमावली संशोधित हुई, कार्यकर्ता नियत हुए व १५००)का चंदा समाके खर्चके लिये हो गया। मेले में आए हुए १५० लडकोंकी परीक्षा ली गई। परीक्षकोंमें पं० धन्नालाल, पं० लक्ष्मीचन्द वागीदोरा, लाला भगवानदास तथा शीतलप्रसादजी आदि कई भाई थे । तथा श्रीमती श्रृंगारबाई ( जो Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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