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________________ . ८५२ ] अध्याय तेरहवां । राखी आवता पुग्ने शान्ति आपी रही होय अथवा तृषातुर दुःखी पुरुषने रहेनी तृषाने शान्त करी आश्वासन आपती होय, जे वरमाद धीमे धीमे वर्षी जमीनमां पाणी पचावी कृषिकारोनां मन रंजन करतो होय, जेने वीजने आकर्षी पोताने स्वाधीन बनावी जगत्नी विशाळ दृष्टि समक्ष मूकी होय, जे जीवात्मा पोताना जीवनने अल्प गणी पोताना सहचारी बन्धुओ माटे, पोतानां प्रान्तनां बाळको माटे के तेओनी दशा शोकजनक देखी तेओने उगारवा माटे के दुनियानी हरिफाईमां आगळ वधारवा माटे जेने अनेक संस्थाओ खोलवा खोलाववा अनहद परिश्रम लीधो होय, एवा सूर्य जेवा प्रकाशमान, सरिता जेवो समभाव राखनारा, आस्ते आस्ते दरेक कार्यो उत्साहपूर्वक करी बतावनारा, जेने विजळीक बळ आणी आपणने न जीवन प्राप्त कराव्युं होय, जे मनुष्ये पोतानुं जीवन समाजना उत्कर्ष माटेज अर्पण वर्यु होय, जेओए आपणे माटे लक्ष्मीनो भोग आपी अगणित प्रयासो आदर्या होय, तेमज आलोक अने परलोक बन्ने ने सुधारनार जे सरस्वती, तेनो जेणे उद्धार कर्यो होय, तेमना गुणानु वाद देशदेश गवाय, तेओने माटे तेमनो समाज, आबालवृद्ध शोका ग्रस्त, निस्तेज अने विदीर्ण थयेलो दृष्टिगोचर थाय, तेमज तेओने माटे पवित्र प्रेमीओ अनेक राग रागणीमां गुणानुवादोनां ब्युगलो फूके, पत्रकारो शोक प्रदर्शित करवा पोताना हृदय घटरूपी पत्रोपर विरह भावनाओ रूपी काळी बोर्डरनी मर्यादा बांधी हृदयाकर्षक लखाणो लखी कोल्मो भरे एटलुंज नहि, पण तेओनी छबी प्रेमी हृदयोमा कोतराई रहे मां शुं आश्चर्य ? वदनं प्रसादसदनं सदयं हृदयं सुधामुचो वाचः करणं परोपकारणं येषां केषां न ते वन्द्यः For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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