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दानवीरका स्वर्गवास ।
[ ८५१ हे प्रभो ! जे अनुपम गुणनिधान पवित्र आत्माना प्रकाशयी दिगंबर जैन कोम झडळी रही ते अत्यारे अमारा हत्भाग्यने लीधे सदाने माटे चाया गया छे अन्तिममां हे प्रभु ! अमारी एटली विज्ञापना छे के ते पुण्यात्माने हमेशां शान्ति आपो. मनसुख कालीदास - बोरसद. ( दिगंबर जैन वर्ष ७ अंक ११ )
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कर्मवीर माणेकचंद |
चलं वित्तं चलं चित्तं चले जीवित यौवने || चलाचलमिदं सर्वं कीर्तिर्यस्य स जीवति ॥ भावार्थ- -धन मंत्रळ छे, चित्त चंचळ छे, जीवित चंचळ छे, यौवन चंचळ छे, अने बधुं चळाचळ छे, तेथी जेनी सारी कीर्ति छे ते पुरुषन जीवे छे.
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प्रिय वांचक ! सूर्य उगे छे अने आयमे छे, नदीमां पूर आवे छे अने जाय छे, श्रावण मासे वरसादना झपाटा पडे छे अने घडीमां तरोधान थई जाय छे, बीज चमकारा करी आपणा चक्षुओने आश्चर्यमा गरकाव करी छेतरी अदृश्य थई जाय छे, वडानी रेटमाळ फरी फरीने पाछी त्यांनी त्यांन आवे छे तेमज पाणीना परपोटा जेबो बनेलो आ नाशवंत देहधारी मनुष्य जन्मे छे अने मरे छे, त्यारे आषा अनियमित जातनां कार्यो माटे मनुष्ये शोक अने हर्प शापाटे धारण करवो जोईए ?
खरेखर ! जे सूर्य सदैव पोतानां किरणोद्वारा प्रकाश आपी आपणने तेजोमय बनावी रह्यो होय, जे नदी निश्चितपणे म्होटुं पेट
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