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________________ दानवीरका स्वर्गवास। [८५३ भावार्थ--जेओर्नु मुख प्रपन्नतानुन घर छे, जेओर्नु हृदय दयावंत छे, जेओनी वाणी अमृतने वरसावनारी छे अने जेओनुं परोपकार ( पारकाने माटे उपकार करवो ) एन कर्तव्य छे, तेवा पुरुषा कोने वंदन करवा योग्य नथी ? ज्यारे एम छे त्यारे तेवा सर्व सद्गुणभूषितने नेताओनो समागम दूर थां कयो सत्य धर्मानुरागी तेमना गुणानुवाद गावानी इच्छा नहि करे ? कयो कठोर हृदगनो पुरुष तेओना स्मारकमां नाणां भरवा इच्छा नहि करशे ? अलबत करशेन ! विशुद्ध प्रेमीओ! आवा एक कर्मवीर समाजनेता, हिंदुस्तानना एक सुप्रसिद्ध, श्रीमान, उदारचित्त धर्मात्मा अने दानवीर, बोर्डिग हाउस अने शिक्षण संस्थाओना पिता, दिगंबर जैन समुहना एक जळळता कोहिनुर, तेमन समग्र जैन संवना स्तंभरूप गणाता अने उत्साही अग्रेसर जैनकुलभूषण दानवीर सेठ माणेकचंद हीराचंद जे. पी. ना अचानक स्वर्गवासथी कदिपण न पूराय एवी जे भारे खोट आपणने पडी छे ते माटे आ लेखनी, आ हृदयनी अवस्थाओ प्रगट करवा असमर्थ छे, तेनुं व्यान म्हारे कया शब्दोमां करवं ! अरे ! हाय ! माणेक मोत लखतां, दर्द दिलमां थाय छे; लखतां अचानक मोतने, मुज कलम भ्रूजी जाय छे. हे गुणियल समाज ! एक वखत आपणे धर्मानुराग छोडी मिथ्यात्वना खाडामां पड्या हता, एक वखत आपणा पुत्रोने केवी केळवणी आपवी तेनी आपणने खबर पण नहोती अथवा केलवणी एटले शुं तेथी पण आपणे अज्ञान हता, एक वखत आपणी बाळाओने केवी केलवणी आपवी के जेथी खरी साध्वी, सन्नारी के गृहि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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