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________________ ८५४ ] अध्याय तेरहवां । णीओ उद्भवी शके विगेरे अनेकानेक बाबतोथी आपणने वाकेफ करनार जो कोई होय तो एक श्रीयुत् माणेकचंदन हता. तेओना अने तेमना कुटुंबीओना भेगा बळथी परन्तु वीरनर माणेव चंदना उपदेशामृतथी आपणा अंगणा पासे (गुजरातमां) अने एओश्रीनु अनुकरण करी आजे आणी समाजमां लाखोना दान थवा मांडयां छे, तेमज घणे भागे एमनाज प्रयासथी समस्त भारतमा दिगंबर संप्रदायमां बोर्डिगो, श्राविकाश्रमो, पाठशाळाओ, कन्याशाळ ओ, पुस्तकालयो, ओषधालयो विगेरे संस्थाओ पुर जाहोजलालीमा चालती द्रष्टिगोचर थाय छे. तमन आपणा गुजरातमा एमणेन स्थापेली बोर्डिंगमाथी बी. ए. सुधीनी उच्च डिग्री संपादन करी वेटलांक रत्नो बहार पड्या छे अने केटलाको एवी डिग्रीओ मेळववा भ ग्यशाळी थशे ए संशय छेज नहि, परन्तु दिलगीरी माथे म्हारे हेवू पडे छे के ए बी. ए.नी डिग्री संपादन करनाराओ जाणे बी. ए. ना अभ्यासमां बीधा होय तेम अथवा तो बी. ए. नो अभ्यास करता मगज कंटाळी गया होय अथवा पहोंचेला श्रमथी शान्ति लेता होय तेम गुजरातमां एक पण व्यक्ति अग्रगण्य भाग लेवा अथवा समाज हितार्थ आ पत्र द्वारा बे शब्द लखवा उत्सुक थई नथी, ए केटलु शोचनीय छे ? आपणापर अगणित उपकारोमांथी ए नररत्नना एक महद उपकारनो उल्लेख करूं तो ते अस्थाने नहि गणाय. गुजरातना मशहुर शहेर सुरतना वत्नी रा. केशवलाल डाह्याभाई कोलेजमां अभ्यास करवा मुंबाई गया हता, ते वखते त्यां गोकलदास तेजपाळनी एक हिन्दु बोर्डिग हयात हती, ते बोर्डिंगनां कार्यवाहकोए जैन जाणीने रा. केशवलालने रहेवा देवा ना पाडी हती Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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