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महती जातिसेवा द्वितीय भाग । [५०७ बदला गया व इस नामका पाटिया लगाया गया। प्रबन्धार्थ १३ महाशयोंकी १ कमेटी बना दी। सभापति जवारमल मूलचन्दके मुनीम शाह छोगालाल, मंत्री कालुराम और रंगलालजी नियत हुए। तथा एक जैनधर्मवर्धिनी सभा कायम कराई जो प्रति चौदसको हुआ करे । यहां छह जातियोंके २५५ घर व ४ दि० जैन मंदिर और ? नसियां है।
यहांसे चलकर ता० ६ को टांगोंके द्वारा ३० मीलपर एक परसाद गांवमें आए। यहां ४० घर दि जैनी थे । १ जैन मंदिर है। शिखर गिर पड़ा था सो फिरसे बन रहा है। मुखिया गौतमचंद बालचंद हैं । सेठजीने सबको जमाकर उपदेश देकर पाठशाला खुलवाने पर राजी किया तथा ५) मासिक मदद देना कबूल की।
ता० ७को सबेरे चलकर धुलेव गांव पोष्ट रिखभदेव आए । यहां १०० घर दि० जैनियोंके हैं। मुख्य सेठ बच्छराज छगनलाल हैं। गांवमें ब्राह्मग गोटी यात्रियोंको अपने घर पर ठहरा लेते हैं। सेठजी हेमचंद गौतमचंद गोटीके घरपर ठहरे और ता० ८ की दोपहर तक रहे । यहां पर श्री ऋषभदेवजीका एक किलेके समान मंदिर है जिसमें ६-७ फुट ऊंची पद्मासन श्याम वर्ण श्री ऋषभदेवकी दि० जैन मूर्ति चतुर्थ कालकी है। इसके चारों ओर एक धातु पटमें अन्य दिगम्बर मूर्तियां अंकित हैं। इस भव्य मूर्तिका सबेरे जल और दूधसे न्हवन होता है फिर केशर चढ़ाते हैं ब पुष्पोंसे प्रायः ढक देते हैं। ७ से १२ तक दर्शन ठीक नहीं होता । पीछे सर्व अंगको शुद्ध करते हैं और केशर छुड़ानी पड़ती है जिससे चरणकी अंगुलियां घिस गई हैं। १ बजेके अनुमान फिर
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