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________________ गुजरात देशके सूरत शहरका दिग्दर्शन। [ २९ ऊपरकी वेदीमें जो प्रतिविम्ब हैं उनमें संबत १५१८, १५१९, १५३७, १६४८, १६६५ व १६८३ है। जिनपर प्रायः ऐसे लेख हैं कि विद्यानंदि, मल्लिभूषण, लक्ष्मीचंद्र वीरचंद्र, ज्ञानभूषण, प्रभाचंद्र बादिचंद्र, या महीचंद्रना उपदेशथी हुमड ज्ञाति आदि... एक बिम्बपर है " १५३७ वैसाख सुदी १२ देवेन्द्रकीर्ति- पदे विद्यानंदि हूमड़जातीय श्रेष्ठी चांपा.. तथा एकपर है “ १५१८ माघ सु. ५ बुधवार देवेन्द्रकीर्ति शिष्य विद्यानंदि उपदेशथी हूमड़वंसे समघर भार्या जीवी ना पुत्री नव करण सिंह.. ............" यहां एक प्राचीन पोथी याने गुटका है जिसमें 'महीचंद्र,प्रभाचंद्र, महीचंद्रके शिष्य ब्रह्मचारी जयसागर' वर्णित है। इन लेखोंसे प्रगट है कि इमड़ ज्ञातिके दिगम्बरी रांदेरमें बहुत माननीय व धनाढ्य हुए हैं। यहां तक कि अभी तक यह प्रसिद्ध है कि जहांगीर बादशाहके समयमें एक धनाढ्य दिगम्बर जैनीकी बुगल रांदेर नगरमें बजा करती थी। तथा ऊपरके लेखोंसे यह भी पता चलता है कि सम्बत् १३८७में आचार्य माघनंदि हुए । माघनादे शब्दके पूर्व भट्टारक शब्द न होनेसे ये निर्ग्रन्थ दिगम्बर मुनि प्रतीत होते हैं । संवत् १५१८ से भट्टारकोंके नाम हैं जिनमें विद्यानन्दि प्रथम है। सूरत नगरके कतारगांवमें विद्यानंदि नामका एक जैनियोंका माननीय स्थान है जहांपर भट्टारकोंकी बहुतसी समाधिये हैं। बहुत संभव है किभट्टारक विद्यानंदिकी पहिली समाधि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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