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अध्याय दूसरा ।
गई हैं तब वहां या कुल सूरत निलेमें जैनियोंका कितना बल होगा, सो पाठकगण स्वयं ही विचार कर सक्ते हैं। खेद है कि जैनियों के प्राचीन इतिहासका कुछ पता नहीं
चलता है । वर्तमानमें रांदेर कसबेमें रांदेरमें जैनियोंका महत्त्व अब भी जो हाल मिलता है इससे
वहांके पूर्वज जैनियों का महत्त्व भली भांति प्रगट होता है । इस समय वहां श्वेताम्बर जैनियोंकी संख्या ५०० व उनके ६ मंदिर हैं, जब कि १०० व १५० वर्ष पहले २००० की संख्या थी। दिगम्बरियोंकी वस्तीमें अब वहां केवल २ वर हैं जो दसा हुमड़ जातिके हैं। उनके नाम चुन्नीलाल लालचंद
और दीपचंद हीराचंद हैं, जब कि १०० व १५० वर्ष पहले वहां दिगम्बर जैनियोंकी बहुत वस्ती थी। उनके रहनेके तीन महल्ले अबतक प्रसिद्ध हैं-निशाल फलिया, सोनी फलिया और हुमड़ फलिया। इसीमें अब दो घर हैं। दिगम्बरी जैन मंदिरोंमें अब केवल एक मंदिर अवशेष है जो बहुत पुराना बना मालूम होता है तथा इसमें बहुतसी प्रतिमायें हैं जो दूसरे मंदिरोंके टूटनेपर लाई गई हों, ऐसा भी संभव है। इस मंदिरके नीचे एक भौंरा है अर्थात् गभारा व तहखाना है। इसमें भी प्रतिमायें सुशोभित हैं। वहां एक धातुकी प्रतिमाका लेख इस भांति है:
" सं० १३८७ माघ सुदी ५ रवि० श्रेष्ठि भीमा भायी रूपलता तयोः सुत बालखान श्रीरत्नत्रय बिम् राउल श्रीअभयनंदिशिष्य आचार्य माघनंदी उपदेशेन श्रीमूलसंघे प्रतिष्ठितं "
___ तथा एक शांतिनाथस्वामीकी मूर्तिपर सं० १६४८ है।
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