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गुजरात देशके सूरत शहरका दिग्दर्शन |
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मनुष्य डूबे व खराबी हुई । सन् १८२४ में एक अंग्रेजी पुस्तकालय विलंदाके बंदरमें खोला गया जो इस वक्त
ऐडुस लाइब्रेरीके साथ मिला दिया गया है । सन् १८३७ ता० । सन् १८३७ ता० २४ अप्रैलको (संवत् १८९३ चैत्र वदी ४) ४ बजे पिछले पहर माछलीपीठमें एक पारसीके यहां आग लगी। यह आग दो दिन तक जली । इसने सुरत शहरका नाश कर दिया । कहते हैं इस अग्निसे ६००० मकान जले, ५०० मनुष्य व अनेक पशु मरे, ७० हजार लोग मुफलिस हो गये ।
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सन् १८४२ में सबसे पहिले अंग्रेजी स्कूल स्थापित हुआ । सन् १८४३ में निमकपर महसूल नियत किया गया । प्रजाने कबूल न किया, हुल्लड़ हुआ, तब सरकारने कुछ महसूल कम कर दिया । १ मई सन् १८५६ को अमरोलीमें रेलवे बननेका काम चला । तथा १ नवम्बर १८६४ के दिन सूरतसे बम्बई तक रेलगाड़ी चलने लगी । यह सूरत १८वीं सदी अर्थात् सन् १७९७ में बहुत आबाद था । ८ लाख मनुष्योंकी वस्ती थी । परंतु सन् १८९१ में घटकर ६ लाख रह गई । अवनति होते २ सन् १९०१ में सुरत नगर में केवल १ लाखकी वस्ती रह गई, अर्थात् ८५५७७ हिन्दू, २२८२१ मुसल्मान और ४६७१ जैन। कुल सूरत जिल्लेकी वस्ती, जिसमें ८ नगर व ७७० गाम हैं, सन् १९०१ में ६३७०१७ थी। इनमें २ सैकड़ा जैनकी वस्ती थी ।
सूरत व रांदेर में जैनियों का वर्णन ।
जैसा ऊपर कहा गया है कि जब रांदेर में संपत्ति राजा जैनी थे व जहां बड़े २ मंदिर थे कि जिनको तोड़कर मसजिदें बनवाई
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