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अध्याय दूसरा । होकर प्रनाके हितकी चिन्ताको छोड़ देता है और इतना ही नहीं प्रजापर जुल्म करके उससे अपना स्वार्थ साधना चाहता है तब अवश्य उसका पुण्य क्षीण होता है। और राज्यशासनका प्रतापी छत्र उसके हाथसे जाता रहता है। अकबर बादशाहसे ले औरंगजेबके राज्यके पहिले तक मुगल बादशाहोंने प्रजाके हितका खयाल किया तब नीचेके नवाबोंने भी अपने प्रबन्धमें ढील नहीं की। पर जब मुगल बादशाह ऐशो-आराममें लीन हुए, तब इधर उधरके नवाब भी प्रनाशासनमें सुस्त पड़ गये । इसीका यह फल हुआ कि सूरतसे नवाबोंकी सत्ता १८००में बिलकुल उठ गई । पेन्शनवालों में नसीरुद्दीन सन् १८२१ तक और अफजुलुद्दीन सन् १८२४ तक कायम रहे ।
सूरतपर अंग्रेजी कम्पनीका राज्य हो जानेसे मराठाओंसे सुलह हो गई। काम बदस्तूर चलने लगा। पर इस समय विलायतमें कलोंकेद्वारा कपड़ा बुने जानेसे यहां कपड़ा बुननेका काम कमती होने लगा। बहुतसे लोग बम्बई जाकर रहने लगे ।
जो उन्नति मुगलोंके समय थी वह सब अवनतिमें परिणत हो गई। वास्तवमें किसी भी वस्तुकी थिरता इस असार संसारमें नहीं है। सब वस्तुयें अपनी दशाओंको पलटनेकी अपेक्षासे क्षणभंगुर हैं। कम्पनीके राज्यमें मुख्य २ बातें इस तरहपर हुई किसन् १८०४ में फिर एक बड़ा भारी दुर्भिक्ष पड़ा जो कि
साठोकालके नामसे प्रसिद्ध हुआ । सन् सूरतकी अवनति । १८१८ में सबसे पहले सूरतमें बसनेवाले
यूरुपियन पोर्चुगीज़ फिरंगी लोग बिलकुल यहांसे चल दिये। सन् १८२२ में ताप्ती नदीकी बाढ़ आजानेसे बहुतसे
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