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________________ ३४४ ] अध्याय नवां । अपने परिग्रहप्रमाण व्रतकी याद आ गई और यह सम्मिलित जायदादका हिसाब विचारने लगे। अपने प्रमाणके अनुमान लक्ष्मीको होती हुई देखकर आपने यह इरादा किया कि अबकी दिवालीपर दूकानका सब हिसाब बनवाकर पक्का निश्चय करके फिर अपना सम्बन्ध कार्यसे हटा लूंगा और रात्रि दिन धर्म व जातिसेवामें अपना शेष जीवन बिताऊंगा। मिती आसोज सुदी ८ से १२ तक बम्बई में रथोत्सव हुआ। खुरजे व मेरठसे रथ आये थे। दो जलेव बम्बईमें रथोत्सव बड़े धूमसे निकली थी, जिनमें ३०६१।)। और प्रान्तिकसभा. की उपज हुई। माणिकचन्द पानाचन्दने की बैठक। १२५) देकर चंवर ढोरनेकी बोली ली थी तथा १००१) देकर एलिचपुरके सेठ लालासा मोतीसाकी तरफसे तानासावनीने श्रीजीकी खबासीकी बोली ली थी । इसमें शोलापुर आदिके अनेक भाई पधारे थे । बम्बई प्रान्तिक सभाकी बैठकमें राजा दीनदयालके पुत्र राजा धर्मचंद सभापति हुए । सेठ माणिकचंदजीने स्वागतकारिणी सभाके प्रमुखकी ओरसे भाषण पढ़ा । सभामें मुख्य प्रस्ताव बम्बई संस्कृत विद्यालयके लिये ध्रुवभंडार करनेका हुआ। आश्विन सुदि ९ के प्रातःकाल हीराचन्द गुमानजी जैन बोर्डि ङ्ग स्कूलके मकानमें संस्कृत जैन विद्यालयका संस्कृत जैन विद्या- शुभ मुहूर्त किया गया । राजा दिनदयालके लयकी स्थापना। हाथसे विद्यालय खोला गया। छात्रोंको तीन विद्वानोंके द्वारा धर्मशास्त्र, व्याकरण और न्यायका पाठ दिया गया। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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