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________________ समाजकी सच्ची सवा। [३४३ रूपाबाई व सेठ पानाचंदने बहुत ज़ोर दिया तब आपने स्वीकार कर लिया। ___ फल्टनमें एक बीसा हुमड़ हरीचंद दोदु थे उनकी लड़की नवीबाई उर्फे फूलुबाई हैं, उसीके साथ सेठजीका, चतुरबाईके विवाह मरणके ४ मास पीछे ही, चैत्र मासमें साधारण रीतिसे हो गया। सेठनी पुत्रकी आशासे नवीबाईको लेकर बम्बई आगए । वह पढ़ी लिखी नहीं थीं इसलिये सेठनीने उनको अध्यापिका रखकर लिखना पहाना सिखाया। जैन समाजमें इस समय राय बहादुर सेठ मूलचंदजी अति प्रख्यात थे। आप धर्म पालनमें बड़े प्रवीण रा० ब० सेठ मूल- व शास्त्रके ज्ञाता थे। आपने यद्यपि कोई चंदजीका वियोग विद्योन्नतिका महा स्तम्भ नहीं खड़ा किया, और सेठ माणिक- पर अजमेर में पाषाणकी नसियां बनवाकर चंदके चित्तका उसमें सुवर्णकी अयोध्या, ऋषभदेवके कल्याविचार। कोंका दृश्य बनवानेमें व श्रावक मुहल्लेमें मनोहर सुवर्ण व मीनेकी पच्चीकारी सहित मंदिर बनवाने व उसमें सुवर्णम समोशरण स्थापित करनेमें बहुत द्रव्य लगाया तथा उस मंदिरमें स्थान स्थानपर चर्चा श्लोक, स्तुति, स्तोत्र लिखवाए। आनके दिन अजमेर में ये दर्शनीय पदार्थ हैं। जैन अजैन सब दर्शनका लाभ लेते हैं। मिती आषाढ़ सुदी ३ ता० १८ जून १९०१ को आप भी इस पुद्गलमई शरीरको यहीं छोड़कर चल बसे । आपके मरणके समाचार पाकर सेठ माणिकचंदजी अपनी तरफ देखते हुए। उसी समय इनको Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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