SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 397
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३४२ अध्याय नवां। पुरके पट्टाचार्य लक्ष्मीसेन भट्टारकके सभापतित्वमें श्रीअतिशय क्षेत्र स्तवनिधिपर हुई। इसीमें नियमावली ठीक की गई तथा चौगले बी० ए० एल एल० बी० कील जो बम्बई बोर्डिंगके सुप्रिटेंडेंट रह चुके थे व सेठ माणि कचंदकी छात्रवृत्तिसे विद्या लाभमें उत्तेजित हुए थे, ऑनरेरी सेक्रेटरी नियत हुए। कोल्हापुर में संस्कृत पाठशालाके लिये १००००)का चंदा हुआ तथा यह तय हुआ कि बम्बईके प्रसिद्ध व्यापारी सेठ माणिकचंद पानाचंदजी जौहरीने एक बोर्डिंग स्कूल बांधकर अंग्रेजी व संस्कृत विद्याभिलाषी जैन विद्यार्थियों के लिये उत्तम प्रकारकी तजवीज की है व विशेष करके दक्षिणके विद्यार्थियों को अत्यानंदसे उत्तेजन देते हैं इसलिये उनका अत्यंत उपकार मानकर इस सभाकी ओरसे उन्हें एक आनंद प्रदर्शक पत्र भेजा जाय तथा इसी भांति इस कार्यमें उत्तेजना देनेके कारणभूत शोलापुरके सेठ हीराचंद नेमचंदको भी एक अभिनंदनपत्र भेजा जाय। आकलून बिम्बप्रतिष्ठाके समयपर शोलापुर, फलटन आदिके बहुतसे जैनी पधारे थे। सेठ माणिकचंदनीको सेठ माणिकचंदका मिलकर अनेकोंने जोर दिया कि आपके द्वितीय विवाह । पुत्र नहीं है, पुत्र विना आप ऐसे प्रसिद्ध सेठकी शोभा नहीं है, तना यद्यपि आपकी अवस्था करीव ४९ वर्षकी है पर आपका शरीर दृढ़ परिश्रमी और सब तरह बलिष्ट है, आप अवश्य विवाह करा लेवे । सेठजीकी बिलकुल इच्छा नहीं थी कि मैं ऐसा करूं, किन्तु यही भावना थी कि अब हमें धर्मसेवा व परोपकार ही करना है, तो भी जब भावन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy