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समाजकी सच्ची सेवा । [३४१ माघ सुदी १३ की रात्रिको सर्व सभाकी ओरसे सेठ
माणिकचन्दजीने पंडित गोपालदास पं० गोपालदास और बरैया और पंडित धन्नालालजी कासलीवालधन्नालालजीको को मानपत्र दिया, क्योंकि इन दोनों विमानपत्र । द्वानोंके प्रयत्नसे सभामें आगन्तुकोंको बहुत
धर्मलाभ हुआ था। शास्त्रस्वाध्यायकी आवश्यक्ता बताए जाने पर २५० भाइयों ने स्वाध्यायका नियम लिया था। सेठ नाथारंगजीने ६ जिवनारे दीं। १३५१) मंदिर भंडार व ३०१) संस्कृत विद्यालय बम्बईको दिया तथा ४५० धर्मपरीक्षा, सटीक, ४५० अकलंकस्तोत्र सटीक व ४५० मोतियोंकी जा सेठ हीराचंद नेमचंदकी रायसे धर्मप्रचार हेतु बांटी। इसी वर्ष ता० २२ जनवरी १९०१ को भारतपर अग्वंद
राज्य करनेवाली महारानी (एम्प्रेस) विक्टोमहारानी विक्टोरि- रिया परलोकको सिधार गई। आपने १८ याका वियोग। वर्षकी उम्रमें सन् १८३७ को राज्य
ग्रहण करके ६४ वर्ष राज्य किया। इनके पीछे महाराजा सप्तम एडवर्ड सिंहासनारूढ़ हुए। दक्षिण महाराष्ट्र प्रांतमें जैनियोंकी संख्या बहुत है जो
• मराठी कनड़ी भाषाके बोलनेवाले व अधिक द० म० जैन सभामें खेतीका व्यापार करनेवाले हैं । इस प्रांतकी सेठजीको अभि- दशाके सुधार हेतु एक सभा ३ वर्षसे नंदनपत्र । स्थापित हुई थी। इसकी तीसरी बैठक माघ
सुदी १ ता० २१-१ १९०१से कोल्हा
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