________________
६२]
अध्याय तीसरा ।
अध्याय तीसरा।
उच्चकुलमें जन्म ।
जनियोंमें एक प्रसिद्ध जाति हुंबड़ है जिसका मूल
निवासस्थान बागड़ या मेवाड़ प्रान्त है हंबड जातिका वर्णन । वहांसे ही इस जातिके लोग निकलकर
अर अन्यस्थानों में फैले हैं । हुंबड़ जातिमें अधिकतर दिगम्बराम्नायके माननेवाले व कुछ श्वेताम्बराम्नायी भी हैं । इस जातिकी स्थापनाका क्या इतिहास है उसका कोई प्रामाणिक पता नहीं चलता है। तो भी इस सम्बन्धमें भाई जवाहरलाल गुमानजी वैद्य परतापगढ़ राज्यने जो छानवीन करके पता लगाया है व हमें एक निबन्ध दिया है, उसके आधारपर यह प्रकाशित किया जाता है कि यह जैनियोंकी ८४ जातियोंमेंसे ५५ वीं जाति है । इसको स्थापित करनेवाले विनयसेन आचार्यके शिष्य कुमारसेन हुए हैं। इन्होंने सबत् ८०० के अनुमान बागड़ देशमें इस जातिको स्थापित किया है । इसके प्रमाणमें गुमानजीने वि० सं० ९०९ में श्रीदेवसेनाचार्य रचित प्राकृत दर्शनसारकी गाथाएँ दी हैं जो निम्न प्रकार हैं:गाथा-सिरिवीरसेणसीसो जिणसेणो सयलसच्छविण्णाणी ।
सिरिपउमणदिपच्छा चउसंगसमुद्धरणधीरो ॥ ३० ॥
भावार्थ-श्रीवीरसेनके शिष्य श्रीजिनसेन सकल शास्त्रोंके ज्ञाता और श्रीपद्मनंदिके पीछे चारों संघोंकी रक्षामें धीर हुए ॥३०॥
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org