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________________ महती जातिसेवा तृतीय भाग। [७३९ एच. डी. प्रन्सिपल संस्कृत कालेज कलकत्ता सभापति हुए। तब डा. जैकोबीको मानपत्र दिया गया व भारत जैन महामंडलकी ओरसे " जैनदर्शनदिवाकर" की उपाधि डा. जैकोबीको प्रदान को गई । २८ को हर्मन जैकोबी सभापति हुए तब डॉ० सतीशचंद्रको 'सिद्धांतमहोदधि' का पद दिया गया। ता. २९ को प्रोफेसर डाक्टर ओ० स्ट्रास कलकत्ता सभापति हुए तब हर्मन जैकोवीने अपना व्याख्यान पढ़ा उसमें दिखलाया कि(Jainism is independent of Budhism, Jainismu is even older than Budhism, Budhists Borrowed from Jains the technical term Ashrava. ") जैन धर्म बौद्ध धर्मसे स्वतंत्र है, जैन धर्म बौद्धसे भी बहुत पुराना है, बौद्धोंने आश्रव का विशेष शब्द जैनियोंसे लिया है। इसी दिन भारत जैन महामंडल की ओरसे सेठ कल्याणमलजी इन्दौरको "दानवीर" ब्रह्मचारी शीतलप्रसादजीको जैनधर्मभूषण' व प्रयाग बोर्डिंगके लिये २५०००) दान करनेवाली सुमेरचंदजीकी धर्मपत्नीको ' विद्याप्रेमिणी' का पद दिया गया। आमद ३०००)की हुई। बावू देवेन्द्रकुमार, और बाबू नंदकिशोरने बहुत परिश्रम उठाया। तथा बाबू चेतनदास बी. ए. महामंत्री महामंडलने अपने मेम्बरोंको भी बुला लिया था जिससे उसका भी जल्सा साथमें ही हो गया था। सेठजीके पास सर्व रिपोर्ट गई। आपने पढ़कर हर्ष माना कि अपने निमित्तसे खुलनेवाला स्याद्वाद महाविद्यालय प्रसिद्धिमें आ रहा है। नकल कविता उपाधि जैनमहिलारत्न । श्री मगनबाई देवि !, जय जयति जिन-पद-सेवि । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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