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________________ ७३८ ] अध्याय बारहवां। पर जाते व समयपर ही लौटकर आते, सर्वसे बातचीत करते व समयपर ही रात्रिको शयन करते थे। इस वर्ष श्री स्याद्वाद महाविद्यालय काशीके संचालकोंने बना रसमें नवम वार्षिकोत्सव ता. २३ से २९स्याद्वाद महा विद्यालय १२-१९१३ तक बड़ी धूमधामसे टौनहालमें काशीका नवम मनाया था। सेठ माणिकचंदनी इस संस्थाके वार्षिकोत्सव । सभापति थे । आपको पधारनेके लिये प्रेरणा भी बहुत हुई तथा आना भी चाहते थे पर शरीरकी अशक्तता काशी आनेके लिये गवाही नहीं देती थी इससे आप नहीं आए पर समानके अच्छे २ व्यक्ति पं. गोपालदासजी, पं. अर्जुनलालजी, जुगमन्दिरलालजी एम. ए., अजितप्रसादजी एम. ए. आदि उपस्थित थे । जर्मनीके प्रोफेसर हमन जैकोबी भारतमें आए थे। इनका स्वागत भले प्रकार करके सभापति बनाये गये थे । सर्व दिगम्बरियोंकी ओरसे आपको मानपत्र अर्पण किया गया था। ता. २५ दिसम्बरको मिस ऐनीबिसेन्टने सभापतिका आसन ग्रहण किया था उस समय भारत जैन महामंडलकी ओरसे श्रीमती मगनबाईकी स्त्री शिक्षा मगनबाईको जैनमहि- प्रचारकी सेवाको ध्यानमें लेकर उनको जैनलारत्नका पद महिला रत्नका पद प्रदान किया गया और एक मनोहर कविताके साथ भेजा गया । बाई जी जल्सेमें आ नहीं सकी थी। __ ता. २६ को सभापति पंडित गोपालदासजी हुए थे। ता. २७ को महामहोपाध्याय डा. सतीशचंद्र विद्याभूषण एम.ए. पी. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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