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महती जातिसेवा तृतीय भाग [७३७ मैनाबाई ७२ वर्षको आयुमें ता० ३ नवम्बर १९१३ को स्वर्गधाम पधारीं । उनकी स्मृति में उनके सुपुत्रोंने १५०००) रु० विद्यादानके अर्थ निकाले । नए वर्ष अर्थात् १९१४ के प्रारंभसे सेठमीका शरीर यद्यपि
___ बाहरसे किसी प्रकारके रोगोंसे पीड़ित नहीं सेठजीकी शरीर हुआ था पर अंतरगमें आपको बहुत निर्बलता स्थितिमें अशक्तता । मालूम होती थी-किसी भी बातका बहुत
विचार करनसे आपको चक्कर आ जाया करता था। इस समय आपके चित्तमें बड़ी भारी चिंता श्री सम्मेदशिखर पर्वतरक्षाकी मौजूद थी। लाला प्रभूदयालकी प्रेरणा व तीर्थक्षेत्र कमेटीके परोक्ष प्रस्ताव नं० २ ता० १६-१०-१२ के अनुसार ता. ५ सितम्बर १९१३को हजारीबाग कोर्टमें पर्वतका पट्टा कायम रक्खा जावे या उसका हर्जा २ लाख रुपया मिले। ऐसा मुकद्दमा बाबू धन्नूलाल और सेउ परमेष्ठीदासजीकी ओरसे राजा रणवहादुरसिंह पालगंज और बाबू कृष्णचंद्र घोष मैनेजर कोर्ट ऑफ वाईसपर दायर कर दिया गया । एक मुकद्दमा जो श्वेताम्बरियोंने दिगम्बरियोंको स्वतंत्र पूजनके हक न होनेका किया था, कोर्टमें अटका पड़ा हुआ था। इन्हीकी पैरवी अच्छी तरह हो कि जिसमें परम पूज्य पर्वतकी रक्षा रहे और दिगम्बर जैनियोंकी भक्तिमें कभी कोई अन्तराय न पड़े ऐसी सेठजीको चिन्ता रहती थी और कमेटीके दफ्तरमें आपको पत्रों के उत्तर देने पड़ते थे । यद्यपि शरीर अशक्त था, पैरोंमें विशेष दर्द होचला था, तौभी आप नियमके अनुसार ही सब काम करते थे। समय पर ही हीराबाग व दुकान
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