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अध्याय बारहवां |
सेठ माणिकचंदजीने अपनी लघुना प्रगट करते हुए उपरोक्त मानपत्र स्वीकार करके ५०१) महासभा के प्रबन्ध खाते, १०१ ) जयपुर जैन शिक्षाप्रचारक समिति व १०१ ) महासभाकी लाइफ मेम्बरीको दिया । डिप्टी चम्पतरायजीने भी अपनी आधीनता बताई और ५००) की छात्रवृत्तियां उन छात्रोंको देने को कहा जो पंडित गोपालदासजी के पास धर्मशास्त्र पढ़ेंगे । प्रबन्ध खाते में और भी मदद आई (बाबू किरोड़ीचंदजी आराने एक चित्र द्वारा शास्त्रों के भंडारोंकी दुर्दशा दिखाई व सरस्वती भवनकी आवश्यक्ता बताई। उसी समय अपील करने से ७००) वार्षिक उपजके वादे १० वर्ष तक के लिये हो गए । कई उपदेशक सभाएं हुई। माह सुदी ३ को शिक्षाप्रचारक समिति जयपुरका जल्सा हुआ। उसमें ब्रह्मचर्या - श्रमकी आवश्यक्ता बताई गई। इसके लिये बाबू गेंदनलालजीने १०००) नकद प्रदान कर दिये। इस समय कुल फंड ३०००) का हुआ । अनाथालय हिसार को भी ८००) का फंड हुआ । सेठनीने अपनी ओरसे कटनी निवासी भाई मन्नूलालको एक सोनेका चांद अर्पण किया, क्योंकि महासभा के काम में उसने सभासद आदि बढ़ाने में बहुत परिश्रम किया था ।
माह सुदी ३ की रात्रिको भारतवर्षीय दि० जैन तीर्थक्षेत्र कमेटीका बड़ा प्रभावशाली अधिवेजन सेठ
जल्सा तीर्थक्षेत्र कमेटी । हुकमचंदजी के सभापतित्वमें हुआ, जिसमें महामंत्री सेठजीने अपनी रिपोर्ट सुनाई, जिसका बड़ा प्रभाव हुआ । बंडी मन्नालाल गिरनार तीर्थके प्रबन्धक आए थे। सेठ हुकमचंदजीके समझानेसे उन्होंने दूसरी कमेटी ठीक की जिसमें बाहरवाले भी मेम्बर हुए ।
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