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________________ समाजकी सच्ची सेवा । [३६७ दी। उस समय सेठोंने इनको बहुत धैर्य बंधाया । माह सुदी ५ के आस पास कई दिनों तक चौपाटोका मंदिर नर-नारियोंसे भरा रहता था । भगवत्के गान भनन नृत्य खूब होते थे । जैनी भाईयोंका भोजनादिसे सत्कार, मंदिरों में दान आदि करके यह उद्यापन बड़े भावसे करके रूपाबाईको बहुत सन्तोष हुआ। तथा इस व्रतके हर्षमें ५०००) गुजरात दि० जैन बोर्डिंग स्कूलको दिया गया तथा बोर्डिंगमें विद्यार्थी अच्छी तरह रहनेकी रिपोर्ट जानकर सेठ माणिकचन्दने निश्चय किया कि प्रेमचन्दनीका कहा हुआ २५०००) शीघ्र लगा दिया जाय तथा ५०००) बोर्डिंगके मकानके लिये भी निकालनेका विचार दृढ़ किया । इसी वर्ष सं० १९६० में सेठ माणिकचन्दकी प्रथम पुत्री फूलकौरका यकायक मरण हो गया । सेठजीकी प्रथम शेठजीको यह भी एक भारी शोकका स्थल पुत्रीकी मृत्यु । आन पहुँचा, पर ज्ञानी और विचारवान सेठने इसे भी थिरतासे सहन किया । फूलकौर कमु (कमला) कन्याको छोड़ गई जिसकी प्रतिपालना और रक्षाका भार मगनबाईजीने अपने हाथमें ले लिया। कोल्हापुरसे थोड़ी दूर एक अतिशय क्षेत्र स्टवनिधि है। वहां दक्षिग महाराष्ट्र जैन सभाका वार्षिक अधिस्तवनिधिमें द०म० वेशन माघ सुदी १४ ता. १६ जनवरी सन् जैन समा। १९०४ से १८ तक था। इसमें अध्यक्ष सेठ हीराचंद नेमचंद शोलापुर नियत किये गए थे। सेठ हीराचंदके लिखते ही सेठ माणिकचंदजी भी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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