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________________ अध्याय नवां । लल्लूभाई प्रेमानंददास एल. सी. ई. नियत हुए । शुरूमें ही इसमें ३८ छात्रोंकी भरती हो गई अपने द्रव्यसे पढानेवालोंके लिये २५) प्रति छः माहीके लिये लेने नियत हुए। इसमें पहले दरजेसेलेकर छठे दरजे अंग्रेजीतकके छात्र भरती हुए। रूपाबाई संसारके चरित्रोंसे भली प्रकार अनुभव लेती हुई जबसे प्रेमचंद पुत्रका वियोग हुआ तबसे रूपाबाईका व्रतो- और भी अधिक उदासीन रूपमें धर्म साधद्यापन । नमें लीन हो गई। तप करके जैसे अनंतमती, चंदना आदि सतियोंने अपनी पर्यायोंको सफल किया था ऐसे ही यह बाई करती थी। छोटे २ व्रतोंके साथ इसने १२३४ के उपवासों का आरंभ संवत १९५१ में किया था सो ९ वर्ष में उनको निर्विघ्न पूर्ण किया तथा जैसे प्रेमचंद सेठ मरते समय ५०००) इस उद्यापन में खर्च करनेको कह गए थे उसी प्रमाण सेठ माणिकचंद और नवलचंदने रूपाबाईजीकी आज्ञासे पूजनका महा समारंभ रचा। चौपाटीके बंगलेमें ही बड़े हॉलमें सजधनकर मंडप किया गया। जहां कई रोज नित्य पूजन भनन गान हुए। बाहरसे भी खास २ भाइयोंको बुलाया गया था। सेठ माणिकचन्दके परम मित्र भाई धरमचंदनी भी सपत्नीक पालीतानासे बम्बई आ गये थे। यहां कर्मधर्मचंदजीकी स्त्रीका योगसे इनकी स्त्रीको प्लेगका रोग हो गया वियोग। और कई दिन बीमार रहकर माह सुदी ४ सं० १९६०को इस पर्यापको छोड़कर चल Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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