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________________ ३६८ ] अध्याय नवां । तुर्त रवाना हुए। शोलापुरसे सेठ वालचंद रामचंद व सेठ रामचंद नाथा आदि कई महाशय पधारे । पहली सभामें कोल्हापुरके एक विद्यार्थीको जिप्सने प्राचीन जैन ग्रथोंके उद्धार पर भाषण दिया था सेठ माणिकचंदजीने प्रसन्न हो ५) इनाममें उसी समय दे दिया । यह सेठनीके विद्या प्रेमका नमूना है। सभापतिका भाषण बहुत विद्वतापूर्ण हुआ, उसको सुनकर मि० यादवरावनी एम. ए. एलएल. बी. कमिश्नर कोल्हापुर जौ अजैन थे बहुत प्रसन्न हुए और उठकर कहा कि-" जैन धर्मके मन्तव्य बहुत उत्तम है। अहिंसा धर्म बहुत ही श्रेष्ठ है आदि ।" तीसरे दिन सेठ माणिकचंदनीने इस बातपर सामान दिया कि चंदे में स्वीकार किया हुआ मूल द्रव्य "व्याज देते रहेंगे " इस मंशासे घरपर नहीं रखना चाहिये, उस द्रव्यसे डरना चाहिये । इस भापणके असरसे बहाना बाकी रूपया लोगों ने अदा करदिया। वास्तवमें यह बात नुचित है कि जब हम कुछ दान करें तो उस व्यको अपने ही पास जमा रखें इससे हमारा ममत्व लगा रहता है अतएव उस द्रव्यको तो अपने यहांसे निकाल कर दे डालना चाहिये । हां, यदि कोई रकम व्याजपर अपने यहां नमः करावे तो फिर जमा करना चाहिये । उसी रकमको विना निकाले लोभ नहीं घटता है। समाने प्रसन्न हो सेठ माणिकचंदनी और सेठ हीराचंदनीको निम्न लिखित मानपत्र दिया Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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