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________________ ~ ~ दानवारका स्वगवास । [८४५ शोकसे शांति पाते जाते हैं। यहां तक कि स्त्री अपने सर्वस्व पतिको खोकर विधवावस्थामें भी ( अधिकतर ) खान पान श्रृंगार भूषणादिको नहीं त्याग सक्ती और कुछ दिन रड़ (रो) कूटकर 'हाय हाय हैई रे' के गीत गाकर फिर अपने रागमें मस्त हो जाती है। आजकल कितनो तो पतिको यहां तक भूल जाती हैं " कि वे फिरसे सुहागिन बन बैठती हैं" इसी प्रकार ज्यों ज्यों दिन बीतते जांयगे, त्यों त्यों इधर उधरकी चिंताओंमें पड़कर भाइयों, आप लोगोंको शोक तो क्या शायद सेठजीकी याद तक भी भूल जायगी। थोड़ी देरके लिये हम यह मान भी ले कि जिन्होंने सेठजी साहबको देखा है व जिनको परिचय है वे कदाचित न भी भूले तो भी उनकी भावी ( होनहार ) सन्तानको तो नाम भी सुनना एक तरह कठिनसा हो जायगा । यों तो सेठ साहेबका नाम दुनियांके इतिहासमें चिरकाल तक स्थान पावेगा, परन्तु उससे लाभ बहुत कम लोगों (खोजियों के सिवाय) को मिलेगा। ऐसी अवस्थामें हमारा क्या कर्तव्य है कि जिससे हमारे सेठीनीका नाम और उनके गुण सदा तक हमें और हमारी परम्परा सन्तानके उत्साहोंको बर्धनार्थ चिरकाल स्मरण रहे। और हम लोग उनका अनुकरण करनेके लिये उत्साहित होते रहें। यों तो सेठनी साहेबने अपनी अवस्थितिमें ही ऐसे २ स्मारक कार्य किये हैं, कि जिससे उनका नाम कल्पांत तक अमर रहेगा, तो भी हम लोगोंपर जो उनका असीम उपकार है, उसका परिचय यद्यपि हमारा आत्मा उनके आत्माके प्रति दे रहा है, किन्तु व्यवहारापेक्षा अब प्रत्यक्ष भी कुछ ( परिचय ) देना Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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