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________________ ८४६ ] अध्याय तेरहवां। आवश्यक है। यह परिचय देना भी उनके लिये कुछ नहीं है, किन्तु हमारी वर्तमान व भावी जाति के लिये एक प्रधान गौरवकी बात होगी। यह बात आगे चलकर बतायगी, कि जैनियों में ऐसे आदर्श पुरुष हो गये हैं, कि जिनकी कीर्ति चिरकाल तक चल रही है, उनका इतिहास हम लोगोंके मुर्दे दिलोंमें जीवत्व शक्ति पैदा कर देगा, इसलिये माइयो, शोकको छोड़ो, अब क्या करें ? अब क्या करें ? ही मत करते रहो, किन्तु क्या करें का उत्तर भी सुनो बड़े पुरुषोंकी सन्तान अपने पूर्वजोंके मरने पर ' हाय, हाय हरे । का पाठ नहीं पढ़ती है। न क्या करें क्या करें, इत्यादि कायरों जैसे शब्द मुंहसे निकालती है, किन्तु अपने पूर्वजोंकी कीर्ति सदा स्थिर रखके उनका स्मारक ( यादगार ) बताती है । उनके उत्तम गुणों का अनुसरण करके केवल उनके कुलकी ख्याति ही नहीं फैलाती है, किन्तु अपना स्वार्थ भी साधन करती है, अर्थात् पुरुषत्व पैदा करके महत्वता प्राप्त करती है । ऐसा समझकर भाइयों ! आपका कर्तव्य है। यदि आपको सेठजीके वियोगका दुःख है, यदि आपके मनमें कुछ भी कृतज्ञताका अंश है, तो स्वर्गवासी सेठ साहबके चिरस्मरणार्थ उनका एक बड़ा भारी स्मारक बना डालो । जैसे रायचन्द्रनी आदिके नामसे " रायचन्द्र जैन शास्त्रमाला " निकल रही है इत्यादि । इस स्मारक बनाने के लिये बम्बई व सूरतमें एक 'दानवीर सेठ माणिकचन्द हीराचन्द स्मारक फंड ' खोला गया है, और अनुमान ५-६ हजारके चंदा भी भरा गया है, परन्तु इतनेसे अभी कुछ कार्य न चलेगा । क्योंकि कोई Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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