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________________ दानवीरका स्वर्गवास । [ ८४७ बृहत् कार्य होना चाहिये और उसके लिये लाखों रुपयोंकी आवश्यकता है, और हमारी कृतज्ञ समाज के लिये यह कुछ (चंदा करके भेजना ) कठिन कार्य नहीं है । सहज में ही हो सकता है इसलिये इस दशलक्षण ( पर्यूषण ) पर्व में प्रत्येक ग्रामके भाइयोंको स्वशक्ति अनुसार रुपया एकत्र करके संपादक, "दिगम्बर जैन " - सूरत के पते पर सेठ माणिकचन्द हीराचन्द स्मारक फंडके नामसे भेजना चाहिये और सेठ साहबके गुणों का अनुकरण करके उनके बोये हुए अंकुरोंकी सेवा करना व और भी नवीन बीज बोना चाहिये । देखें, कौन कौन सज्जन अपनी कृतज्ञता व दिली शोकका परिचय देते हैं ? बस बन्धुओं, अब क्या करें ? का उत्तर मिश्र, कि स्मारक बनावो, ( उसके लिये द्रव्य एकत्र करके भेजो ) और उनके गुणोंका अनुकरण करो, तथा सेठजी के अनुसार आप भी अपने गुणों से संसारको मोहित करके स्वर्ग मोक्षका मार्ग पकड़ो। यही करो, अब यही करो, अब यही करो । आपका कृपाभिलाषी मा० दीपचन्द परवार - नरसिंहपुर ( सी० पी० ) ( " दिगंबर जैन " वर्ष ७ अंक ११ ) * * * शोकोद्गार. आजे आपणी आसपास जे ग्लानि तथा शोकनी छाया प्रसरी रही छे ते शानी छे ? सर्व कोई आ दुनियाना दिगम्बर जैन नानाथी ते मोटा सुधी गळगळा कन्ठे वही शके छे के आ असह्य ग्लानि ते आपणा अभेद मार्ग प्रवासी, ब्रह्मनिष्ट सुरलोकमां विरहनार, तत्वविद् तथा मानवकूलमां मनुष्याकृतिथी फिरस्ताना रूपमां आवेला For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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